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________________ जीव और कर्म-विवार [३२ संवेदन धानका अभाव होगा, जो सब जीवोंको होता है । जो स्वसवेदन ज्ञानको अभाव मान लिया जाय तो जगतके समस्त पदा. थोंके ममात्र माननेमे क्या आपत्ति है ? स्वसंवेदनता प्रत्यक्ष सिद्ध है। सब जीवोंके अनुभवमें हैं। उसका अभाव किस प्रकार माना ना सका है ? सुख दुःखका अनुमव जोवको ही होता है। जो जीव पदार्थ नहीं माना जाय तो सुख दुःखका अनुभव नहीं होना चाहिये। यंत्र आदिमें गमनागमन करनेको शक्ति प्रकट होजाती है; बोलनेकी शक्ति प्रकट हा सका है। परंतु सुख दुःखके अनुभव करनेकी शक्ति किसी भी यंत्रों उत्पन्न नहीं हुई ? विद्युत् अथवा मशीन मादिके द्वारा पंचभूतोको एकत्र करने पर भी किसी एक इंजन या भाष्पयंत्रमें सुग्न दुःखको अनुभव करनेकी शक्ति नहीं है और न उत्पन्न हो सका है। इससे मालुम होता है कि शरीरके माभ्यंतर सुख दु.खको अनुभव रखने वाला और चैतन्य शक्तिके द्वारा अपना स्वरूप व्यक्त करने वाला शरीरसे भिन्न कोई अन्य मीय पदार्थ है।" जिसका स्वसंवेदन सबको होता है। अन्यथा में हं, मैं सुखी हूं, मैं जाननेवाला हूं, मैं क्षुधातुर हूं, मैं पिपासातुर हूं इत्यादि अनेक प्रकारका स्वसवेदन ज्ञान सबको कैसे होता है? कदाचित् ऐसी शक्ति इनद्रियोंमें मान ली जाय ? तो फिर यही एक प्रक्ष रहेगा कि इन्द्रिया जड (अजीव ) हैं या चैतन्य जो इन्द्रियोंको ( अजीब ) माना जाय तो जड पदार्थ में चैतन्यशक्ति का अभाव होनेसे इंद्रियों में ज्ञान दर्शन का अभाव होगा सौर ज्ञान
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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