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________________ जीव और का-विचार। तो भी एक जीवको दूसरे जीव में मिल जानेकी शक्ति कैसे प्रकट हुई ? परमाणुमें चेतनता मनादि रूपसे हैं या सादि रूप है । जो अ. नादि माने तो जीवको निराकार निरंजन किस प्रकार कह सकेंगे। क्योकि परमाणु मूर्तीक होनेसे उसका कार्य भी मूर्तीक होगा ? जो परमाणुमें चेतनता सादि है तो वह किस कारणसे कब उत्पन्न हुई ? __ इस प्रकार विचार करनेसे परमाणुमें जीव मानना युक्ति और तर्कसे किसी प्रकार भा सिद्ध नहीं हो सका है। जय परमाणु ही जीव मान लिया जाय तो समस्त सृष्टि अनादि माननी पडेगी? क्योंकि आकाशादि परमाणु सर्वथा नित्य हैं। जन्म-मरणको कल्पना भी नहीं हो सकेगी ? · . जो लोग परमाणुमें जीव न मानकर जीवकी सत्ताको सर्वथा मानते हैं। उनको चैतन्यशक्ति ( जान दर्शन ) शरीरमें जीबके बिना किस प्रकार होती है यह सुनिश्चिन प्रमाण द्वारा निर्धारित करना ही होगा। अन्यथा बस्तुकी सिद्धि नहीं होगी। चैतन्यशक्ति आत्माको छोडकर अन्य पदार्थमें सर्वथा नहीं रहती है और न किसी प्रकार उत्पन्न हो सक्तो है । जो अन्य पदार्थ में चैतन्यशक्ति माने तो अजीव पदार्थका अभाव होगा। जो अजीव पदार्थ में चैतन्यशक्ति मिलने पर उत्पन्न होती है ऐसा मार्ने तो अलत्से प्रादुर्भाव मानना पड़ेगा और कारण विना मी कार्य का होना मातना पड़ेगा। समस्त वस्तु शून्य व एक रूप मनना पडेगी। सो प्रत्यक्ष और युक्ति दोनों प्रमाणोंसे वाधिन है यदि जीव-पदार्थ सर्वथा नहीं है ? ऐसा माना जाय तो, प.
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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