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________________ जोध और फर्म-विचार। [२६१ करना मत सीखो जिससे तुम्हारा धर्म नष्ट हो, तुम्हारा मागम नष्ट हो, धर्म मायतनमें मिथ्या मपर्णवाद लगाफर । मेद्रोही मत बनो। पापके प्रवारफ मत पनो, धर्मके निदफ मत पनो, शील धमके लोप फरनेगले मत यनो, हिंसा झुठ चोरीके पढानेवाले मत यनो, हिन्दी भो धर्मात्मा भाइयोंका दिल दुसानेवाले मत बनो, मानके जालमें दुनियाको ठगने घाले मत पनो, जान तलवार भी अधिक कर है तलवारस एक ही मनुष्यका बघ होता है परन्तु ज्ञान हजारों अनुप्पोंका यध एक साथ होजाता है इसलिये हे ज्ञानवारो! मातका दुरुपयाग मत करो । ज्ञान प्राप्त कर ज्ञानले अन्याय मत फरो। मानने वारिन पालो, नानसे शुद्धताफा विचार करो । बामवर्षका संचन फगे। दी जानी। जिसने अपने को पापस बनाया है। जिला पाग फोका त्याग है। जिसने पिढशुद्धि भोजनशुद्धिका पालनगर अन्याय और अत्याचारको स्वत: छोडा है तथा संसारस अन्याय और अत्याचारस अपने को पचाया है। मानो मनुष्य सम्यग्दर्शनको वृद्धि करता है । सम्यग्दर्शनको विशुद्धि करता है, जिनागमकी पवित्रताका सर्वत्र प्रचार घरना है, यात्माको पहिचानता है, सब जीवोंपर दया करता है, समस्त जीवॉका हित चाहता है, स्वार्थ या मोज मजाके लिये अन्यायका सेवन नहीं करता है, सदावारको नष्ट नहीं करता है, पाप पुण्यको पहिचानता है कर्मबंधको समझना है। परन्तु वर्तमान समयमें जिनागमको श्रद्धा रखकर जिनागमके
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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