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________________ २६०] जीव और कर्म-विचार । नेता वना, जगतके भोले जीवोंके धन और स्त्रीको हरण करनेवाला बना, मागमको मिश्या टहराने घाला घना, गुरुओंकी निन्दा करने थाला बना, भगवानकी मूर्तिका निरादर करने वाला बना जैनधर्म में अवर्णवाद लगानेवाला धना, जैनधर्मकी पवित्रताको नष्ट करनेवाला चना, जैनधर्मके पवित्र भेषको धारणफर चांडालोंके साथ भोजन पान करनेवाला वना, विषयक्षाय और मिथ्या मार्गकी पुष्टि करने वाला बना, अनंत संसारको बढानेवाला बना ऐसी दशामें धिकार है तेरे ज्ञानको! धिक्कार है तेरी समझको! धिकार है तेरो नीतिको! धिकार है तेरी शिक्षा को! रे विचार शील! जरा तो विचार कर कि ज्ञानके द्वारा कैसे पवित्र गौर उत्तम कार्य होते है ज्ञानी पुरुपोंके कार्य लोकोत्तर होते हैं परंतु हे ज्ञानिन् ! तू ज्ञान संपादन कर एवं शानका प्रोफेसर बन फर जिनागमके विरुद्ध मिथ्यात्वकी वृद्धि करता है। मिथ्यात्यकी वृद्धिमें धर्म मानता है, जिनागमके लोप करनेमें ही अपना सौभाग्य समझता है परन्तु तेरो यह भूल तुझको अवश्यही दुख देगी, तेरे दुष्ट कार्य तुझको अवश्यही नरफका दुख देंगे, तुझे गदा सुअरकी पर्यायमें पटफेगें कमौका फल अवश्यही मिलेगा। __ हे विचार शील ! मिथ्यात्वके समान अन्य कोई पाप नहीं है मिथ्यात्वकी वृद्धि जिनागमकी पवित्रता नष्ट करनेसे, जिनागमकी आशाको नहीं माननेसे, जिनागमको सत्य स्वरूप नहीं जाननेसे, जिनोगमके अर्थ में विपर्यास करनेसे, देव गुरुकी मिथ्या निदा, करनेसे होती है। इसलिये चाहे जो हो परन्तु पेसा परोपकाए
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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