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२६२] जीव और कम-विचार । ज्ञान द्वाग ज्ञानी बननेका अभाव हो गया और पश्चिम विधा (नास्तिक विधा ) की कुशिक्षासे अपनेको ज्ञानी (नक्ली ज्ञानीका) बाधंवर पहरनेवाले मनुष्य झोनका सदुपयाग नहीं करते हैं। घास्तविकमै उनका ज्ञान मचा नहीं होने से पुण्य पापके कार्यो में विक जग भी नहीं रहता है। वास्तविक दया नहीं पालते है। कायदा कानूनसे बचना वास यही महिला धर्म समझते है। घोडा नहीं चले ना मार देने में हिंसा नहीं, पशु पक्षीमें जीव नहीं, पायर और असमर्थमे मात्मा नहीं हैं ऐसे मलिन विनासे हिसा और पहिसाका स्वरूप जानते ही नहीं।
जाने हासेक्यांकि जिनागमके पवन उनके भोग विलास मोज मनामे अनीति घतलाते है। असदाचार पतलाते हैं। इसलिये वर्तमानके कुशिक्षित ज्ञानी जिनागमफा विश्वास नहीं करते है। मिथ्यात्वसं वचो मिथ्यात्वको छोडो, मिथ्यात्यके त्यागमें धर्म मानो, हे भाई! इसी में सपका हित है।
कर्मबंधका क्षय असंयत सम्यग्दृष्टी (चोथागुणस्थान) संयता संयत (पांचवां गुणस्थान) प्रमत्त गुण स्थान ( छहागुणस्थान ) अप्रमत्त । सातवागुणस्थान ) में क्रमसे दश प्रकृतिका क्षय होता है। - अनंतानुवंधी क्रोध १ मान २ माया ३ लोभ ४ मिथ्यात्व ५ सम्यमिथ्यात्व ६ सम्यक्त्व प्रकृति ७ तिर्यगायु ८ देवायु'६ नर. कायु १० इस प्रकार दश प्रकृतियोंका क्षय बौथा पांचवा छट्टा सातवें गुण स्थानमें होता है।