SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीव और कर्म-विचार। [२५५ (परोसे ) फरना, दानदेना, दानके लिये रसोई घनाना, मदिरजीको साफ करना, गुरुजनोंकी यावृत्य करना, गुरुजनोंको नमस्कार करना, घोडफर विनयम वंदना करना, ढोक देना, इविथ पूर्वक चलना, जाबाकी हिम अपने शोरके व्यापारसे न हो इस प्रकार शरीरकी प्रवृत्ति फरना, शगेम्स गैगामी संवाकरना भगवानको पूजन बयत भकि साय नृत्य पूर्वक करना इत्यादि पुण्यकार्यका कापरे द्वारा मांपादन करना चाहिये। ववनके द्वारा दिन मित परको सुख फरने गले ठागमके अनुकूल धनन पालना, णमाकार मंत्र का जाप देन', भगवानकी स्तुतिकरना, शास्त्रों का पठन करना, जीवोंको दयामा उपदेश देना शास्त्रार्य कर जिनमार्गको जगदम्न प्रमाना करना, आगमके यवनोंका प्रचारकरना, गुरुजनोंके ( आचार्य उपाध्याय साधु ऐल पक्षुल्लक आदि ) समक्ष यिनीत भावले आगमके रहस्यको पूछना, शास्त्रोंका पहाता यर्थ बतलाना पाठ करना, नत्यायसूत्र, सहस्त्र माम, मक्कामरादि पाठोंका योलना) सो सय यवनके शुमकार्य है। मनके शुमकार्य-तत्वोंका श्रद्धान करना, प्रभुका ध्यान धरना, मगवानके गुणोफा चितवन करना, संसार देश भोगोंसे वैगग्य मावनामोका चितवन करना आगमकी आशाका सर्वत्र प्रचार हो ऐसी भावना करना, जिनागमकी पवित्रता सर्वकालमें सवत्र मविछिन्न बना रहे ऐसा विचार करना, समस्त जीव जिनराजकी मामाफी शिरोधार्य फर क्व पापोंसे बचें ऐसा विचार करना, जिन धर्मपर घरके मिथ्यात्वी व अन्य मतोंके द्वारा जो मिथ्या अवर्ण
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy