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जीव और धर्म.विचार।
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तत्काल पुजादि शुभ कार्योका फल नहीं प्राप्त होता है फालातर में अवश्य ही पुण्य कर्मक्षा फल नियम प्राप्त होता है। ___ कमी कमा मायोंकी विशुद्धतासं कितने ही जीवोंवो उनके मशुम स्मोका परिणमन पूजादि शुभकार्यों के फलसे तत्काल ही शमरूप हो गया है। सर्पपी फलमाला होगई, दरिद्र लक्ष्मीवान होगये, गेगी पंचन काया बन गये। नि:पुत्रसंतति पाले बन गये। सप्रकार पूजादि शभ कार्योसानिशय पुण्य तत्काल हो फल प्रद होकर मनन जीशे के बडे बडे भारी सक्टाको दूरपर उन्हें परम सुखी बना देना । . इसलिये समान भरजीनोंको दर्मबंधका स्वरूर जानकर यह यित्रार करना चाहिये कि विस भी प्रकारमे पुण्य संपादन पर रिसा भी समय जिन् पृजन-निगु स्मरग-जिनस्पचितवन जिन ग्तुतिगायन आदिले पुण्य वृद्धि करें।
पुष्य अवश्य हा अपना फल, सुररुप बतलायेगा। दुखोंसे एचायेगा और संपटोंको दूर परंगा परतु पुण्य अपना फल दिये विना नहीं रहेगा। - इसीप्रकार पापकार करते समय विचार करना चाहिये कि पाप फार्थीका फल (जीव तिसावारी परस्त्री सेवन अन्याय आदि पापकार्योंका फल) अवश्य ही मिलेगा। अत्यन्त घोर पाप कमेके फलसे अपने पूर्व भवय पुण्य कर्मोंका फल भी अशुभ परिणमन हो जाता है और वर्तमान पापका फल भी तत्काल ही प्राप्त हो जाता है।