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जीव और कर्म दिवार ।
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यह भी मान आयुमें होता है भुज्यमान आयुमें नहीं ? श्रेणिक महाराजकी आयुबंध तेतीस सागरसे केवल ८४ हजार
वर्षका ही रह गया ।
इसी प्रकार मिध्यादृष्टि जीवोंकी पुण्य प्रकृतियों की स्थितिका घटना सो अपकर्षण है ।
उदीरणा-जिस कमका अनुभाग उदय कालके प्रथम ही हो जावे । धर्मका फल उदयकालके प्रथमद्दी उदयमें आ जावे या उदय कालके प्रथम हो उदय रूप ले आना तो उदीरणा है ।
सत्य-कमका मस्तित्व आवाधा काल पर्यंत घरावर रहना सो सत्य कहलाता है। कर्मके मस्तित्वको सत्व कहते हैं ।
उदय-कर्म अपना फल कालानुसार प्रदान करे अनुभाग रूपमें प्रवर्तित हो जाये उसको उदय कहते हैं ।
उपशम-सत्तामें रहकर कर्म उदय काल होनेपर भी अपना फल नहीं प्रदान करे उसको उपशम कहते है ।
निघत्ति-जिस धर्म की उदीरणा हो सकी हो परन्तु संक्रमण न हो सके उसको निधत्ति कहते है ।
निःकाचन- जिस कर्मकी उदीरणा व संक्रमण ये दोनों नहीं हो सके कर्म अपना अनुभाग पूर्णरूपले प्रदान करे उसको निःकाचन बंध कहते हैं ।
"कर्मविधि टारी न टरे, कर्म अपना फल दियेविना नहीं रहते हैं। पुण्य पुरुषों को भी अपना कार्य घतला देते है जिसको भकि संष्यता कहते हैं। वह निःकावन नामका कर्मबंध है । यों तो