SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीव और कर्म दिवार । [ २५१ यह भी मान आयुमें होता है भुज्यमान आयुमें नहीं ? श्रेणिक महाराजकी आयुबंध तेतीस सागरसे केवल ८४ हजार वर्षका ही रह गया । इसी प्रकार मिध्यादृष्टि जीवोंकी पुण्य प्रकृतियों की स्थितिका घटना सो अपकर्षण है । उदीरणा-जिस कमका अनुभाग उदय कालके प्रथम ही हो जावे । धर्मका फल उदयकालके प्रथमद्दी उदयमें आ जावे या उदय कालके प्रथम हो उदय रूप ले आना तो उदीरणा है । सत्य-कमका मस्तित्व आवाधा काल पर्यंत घरावर रहना सो सत्य कहलाता है। कर्मके मस्तित्वको सत्व कहते हैं । उदय-कर्म अपना फल कालानुसार प्रदान करे अनुभाग रूपमें प्रवर्तित हो जाये उसको उदय कहते हैं । उपशम-सत्तामें रहकर कर्म उदय काल होनेपर भी अपना फल नहीं प्रदान करे उसको उपशम कहते है । निघत्ति-जिस धर्म की उदीरणा हो सकी हो परन्तु संक्रमण न हो सके उसको निधत्ति कहते है । निःकाचन- जिस कर्मकी उदीरणा व संक्रमण ये दोनों नहीं हो सके कर्म अपना अनुभाग पूर्णरूपले प्रदान करे उसको निःकाचन बंध कहते हैं । "कर्मविधि टारी न टरे, कर्म अपना फल दियेविना नहीं रहते हैं। पुण्य पुरुषों को भी अपना कार्य घतला देते है जिसको भकि संष्यता कहते हैं। वह निःकावन नामका कर्मबंध है । यों तो
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy