SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ | - जीव और कर्म विचार । Hygie नवमें गुणस्थान ( अनिवृत्ति करण ) के प्रथम भाग में - पांच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण सातावेदनी १० चार संज्वलन १४ पुवॆद १५ यशः कीर्त्ति २६ ऊंचगोत्र १७ पंच अंत Ĉ राय २२ इस प्रकार नवमें गुण स्थानके प्रथम भागमें २२ फम प्रकृति बंध होता है । नत्रमें गुणस्थानके द्वितीय भाग में उक्त २२ धर्म कृप्रतियों में से पुवेद नामकी प्रकृतिको छोडकर २१ प्रकृतियोंका कर्मबंध 7 होता है । तीसरे भाग में - संचलन क्रोध प्रकृतिको छोडकर २० प्रकृति कर्म होता है । चौथे भाग -संज्चलन मान प्रकृतिको छोड़कर १६ प्रकृतिका कर्मबंध होता है । पाचवें भाग -संज्वलन माया प्रकृतिको छोडकर १८ प्रकृतिषा वर्मबंध होता है । ( पांच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण ६ सातावेदनी १० सूक्ष्म लोभ ११ यशकीति १२ ऊंच गोत्र १३ पांच अंतराय १८ इसप्रकार १६ क प्रकृतिबंध होता है । दशवे - सूक्ष्म सांपराय गुणस्थानमें-पांव ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण ६ सातावेदनी १० यशः कीर्ति ११ ऊंच गोत्र १२ पांच अंतराय १७ इस प्रकार १० कर्म प्रकृतियोंका कर्मवध होता है । इसके बाद उपशांत व पाय क्षोण पाय सयोग देवली इन तीन गुण स्थानोंमें एक सातावेदनी वर्म प्रकृतिका बंध होता है । 4 J
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy