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- जीव और कर्म विचार ।
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नवमें गुणस्थान ( अनिवृत्ति करण ) के प्रथम भाग में - पांच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण सातावेदनी १० चार संज्वलन १४ पुवॆद १५ यशः कीर्त्ति २६ ऊंचगोत्र १७ पंच अंत
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राय २२
इस प्रकार नवमें गुण स्थानके प्रथम भागमें २२ फम प्रकृति बंध होता है ।
नत्रमें गुणस्थानके द्वितीय भाग में उक्त २२ धर्म कृप्रतियों में से पुवेद नामकी प्रकृतिको छोडकर २१ प्रकृतियोंका कर्मबंध
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होता है ।
तीसरे भाग में - संचलन क्रोध प्रकृतिको छोडकर २० प्रकृति कर्म होता है ।
चौथे भाग -संज्चलन मान प्रकृतिको छोड़कर १६ प्रकृतिका कर्मबंध होता है ।
पाचवें भाग -संज्वलन माया प्रकृतिको छोडकर १८ प्रकृतिषा वर्मबंध होता है । ( पांच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण ६ सातावेदनी १० सूक्ष्म लोभ ११ यशकीति १२ ऊंच गोत्र १३ पांच अंतराय १८ इसप्रकार १६ क प्रकृतिबंध होता है ।
दशवे - सूक्ष्म सांपराय गुणस्थानमें-पांव ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण ६ सातावेदनी १० यशः कीर्ति ११ ऊंच गोत्र १२ पांच अंतराय १७
इस प्रकार १० कर्म प्रकृतियोंका कर्मवध होता है ।
इसके बाद उपशांत व पाय क्षोण पाय सयोग देवली इन तीन
गुण स्थानोंमें एक सातावेदनी वर्म प्रकृतिका बंध होता है ।
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