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________________ जोव और धर्म-विचार। [२३५ भयोग फेवली गुणस्थानमें किसी भी रम प्रकृतिका धंध नहीं, होता। स्थितिबंध पर्म पुगल वर्गणा जो आत्माके साथ संबंधित होती है ये पितने समय पयंत भात्माके साथ रहते हैं। उनकी स्थिति कितने समर पपेन रहती है। जैसे पक मनुष्यने आदार लिया आहारका रस वन पर सहारका भाग कितने समय पयत रहेगा इस प्रकार की स्थिनिक स्थिनिबंध मदते है। पांच मानावरण, नविध दर्शनावरण, सातावेदनी पाच अंतराय, इन बाँकी स्थिति बंध तीसोडाफोडि मागरको है। मिथ्यात्वकी (दर्शन मोहनी कम) उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडा कोडि मागरफी है। सातावेदनी स्त्री वेदनी मनुष्य गति प्रायोग्यानु पूर्व्यसी उत्कृष्ट यिनि २५ फोडाकोडिसागरकी है।। अनंतानुबंध क्रोधमान माया लोभ, अप्रत्यारयान-प्रत्याख्यान और सध्यनन कोध मान माया लोभ इन सोलइ कपायको उत्कृष्ट स्थिति ५० कोटाकोडि सागरको! पुवेद, दाम्य, देवगति, समचतुरस्त्र संस्थान, बनवृषभनाराच संहनन, देवाति प्रायोग्यानु पूर्व्य, प्रशस्न विहायोगति, स्थिर, शुम, सुभग, सुस्वर, मादेय, यशफीति अयशः कीर्ति उंचगोत्र इन फर्मों की स्थिति १० कोटाकोडि सागरकी है। नपुंसक वेद, रति, अरति शोक, भयजुगुप्सा, नरकगति तिर्य.
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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