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, जोव और कर्म-विचार। १९३३ ___ असातावेदनी १ अरति २ शोक ३ अस्थिर ४ अशुभ.५ अयशः कीर्ति ६ ये छह प्रकृतियोंका बंध नहीं होता है। ...' ___ माट- अपूर्व परण गुण स्थानमें ५८ धर्म प्रकृतियों का बंध होता है। सातवें गुणस्थानमें जो ५६ वर्म प्रकृति बनलाई है उनमें देवायु फर्म प्रकृतिको छोडकर शेष ५८ धर्म प्रकृतियोंका धर्म बंध होता है यह एक कर्म प्रकृति आठवेके प्रथम अंशमे कम होती हैं। परंतु दूसरे भागमें निद्रा और प्रचला इन दो कर्म प्रकृतियों का वंध कम नहीं होजाता है इसलिये पाठवं गुणस्थान ५६ प्रकृतिदोंको कर्म बंध होता है। तीसरे भागमें-पंचेंद्रिय जाति (क्रियिक तेजस आहारक कार्मण शरीर ) चार शरीर ६ समचतुरल सस्थान ७ वैक्रियिक शरीर आगोपाग आहारक मागोपांग वर्ण १० गंध १२ रस १२ स्पर्श १ः देवगति प्रायोग्यानुपूर्व २४ अगुरुलघु १५ उपघात १६ परघात १७ उश्वाल १८ प्रशस्त विहायोगात १६ त्रस २० वादर २१ पर्याप्ति २२ प्रत्येक शरीर २३ स्थिर २४ शुभ २५ सुभग २६नुस्वर २७ आदेय २८ निर्माण २६ तीर्थकरत्व ३व्ये तीस प्रकृतिको छोड़कर अवशेष २६ प्रकृतियोंका बंध होता हैं। ___ आठवे गुणस्थानमें वध योग्य कर्म प्रकृति
पंच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण (चक्षु अवक्षु अवधि केवल) सातावेदनी १० चार सज्वलन छपाय १४ हास्य १५ रति १६ मय १७ जुगुप्सा १८ पु वेद १६ यशकीत्ति २० ऊंच गोत्र २१ पंच मंतराय २६
इन २६ कर्म प्रकृतियोंका कर्मबंध होता है।