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________________ जोव और कर्म-विचार। । २३४ 'स्पर्श ३८ रस ३६ गंध ४० वर्ण ४१ देवगति प्रायोग्या पूर्व ४२ 'मगुरु लघु ४३ उपधान ४४ परधात ४५ उश्वास ४६ प्रशस्त विहायोगति ४७ प्रत्येक शी ४८ प्रल ४६ सुभग ५० सुस्वर ५६ शुभ ५२ अशुभ ५३ वादर .४ पर्याप्ति ५५ रिचा ५६ आस्थेर ५७ मादेय ५८ यशः कोति ५६ अयशः कानि ६० नार्थ करत्व ६१ ऊंच गोत्र २ पंच अन्तराय ६७ , इस प्रकार ६७ सेंडसट प्रकृतियों का वध पांचवें देश विस्त गुणस्थानमें होता है। पाचवे गुणस्थानमें अवंध प्रफनि अप्रत्याख्यान पाय ४ मनुष्य ५ मनुष्यगति ६ औदारिक शरीर ७ औदारिक आगोवाग ८६ज्र वृषम नागव संहनन ह मनुध्य गति प्रायोग्यानुपूर्ण १० पानवें गुगस्थ नमें उक्त दश प्रक नियोंका फर्मबंध नहीं होता है इसलिये ये कति अवधक है। उटे प्रमत्त संयत गुणस्थानमें पांच ज्ञाना रण ५ (चक्ष अन्नक्ष अवधि केवल निद्रा प्रचला ) छह दशनावरण ११ दो वेदनी १३ संचलन काय १७ हम्यादि पट नो कषाय २३ पुवेद २४ देवायु २५ देवगति २६ पंचेन्द्रिय जाति ७ चार शरीर (वैक्रियिकाहारक तेजस कार्मण ) ३१ वै. क्रियिक मागोपांग ३२ आहारक आगोपाग ३३ निर्याण ३४ समचतुरस्त्र संस्थान ३५ स्पर्श ३६ रस ३० गध ३८ वर्ण ३६ देवगति प्रायोग्यानुपूर्व ४० अगुरु लघु ४१ उपघात ४२ परघात ४३
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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