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________________ २३०] । लीव और फर्म-विचार । बौथे गुण स्थानमें- .. ... .. · पांच ज्ञानाधरण ५ ( चक्षु-प्रचक्षु अवधि केवले निद्रा अनला) छ दर्शनावरण ११ दो वेदनी १३ चारह कपाय (अप्रत्यास्थान प्रत्याख्यान संज्वलन ) २५ हास्यादिषट् नौ कपाय ३१ पुवेद ३२ देवगत ३३ मन्प्यात ३४ पंचेन्द्रिय जाति ३५ चार शरीर ( औदारिका क्रियिक तेजस कार्मण) ३६ औदारिक मांगोपाग ४० क्रियिक भागोग'४१. निर्माण ४२ सम चतुरन रूस्था ४३ चल वृषम नागच संहसनन ४४ स्पर्श ४५ रस ४६ गंध ४७ वर्ण ४८ देनगति प्रायोग्यानुपूर्व ४६ मनुष्यगति प्रायोग्यानुः पुज्यं ५० गुरु लघु ५१ उपधान ५२ परघात ५३ उश्वास ५४ प्रशस्त विहायोगति ५५ प्रत्येक शरीर ५६ वस ७ सुभग ५८ सुस्वर ५६ शुभ ६०.अशुभ ६१ वादर ६२ पर्याप्ति ६३ स्थिर ६४ अस्थिर ६५ आदेय ६६ यशः कीर्ति ६.७ अयशः कीनि ६८ ऊब गोत्र १ पात्र अन्तराय'७४ मनुष्यायु ७५ देवायु ७ तीर्थकर ७७ - इस प्रबार चोथे ( अविरत गुणस्थानमें ) ७७ प्रकृतियोंका कर्म बन्ध होता है। " पनवे संयता संग्रत गणस्थान- .. . पाच ज्ञानावरण ५ ( चक्षु अनक्षु.अवधि-फेवल निद्रा प्रचल) छह दर्शनावरण ११ दो वेदनो १३ माठ कपाय (प्रत्याख्यान सं ज्वलन ) २२ पुवेद २२ हास्यदिपट २८ देवायु २६ देवगति ३० पंचेन्द्रिय जाति ३१ वैक्रियिक तेजसं फार्मण) नीन. शरीर ३४ वैक्रियिक आंगोपांग ३५ निर्माण ३६ समवेतुरस्त्र संस्थान ३७
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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