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जोव और कर्म-विचार |
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मय जुगुप्सा ३२ पुछेद ३२ देवगति २३ मनुष्यगति ३४ पंचेन्द्रिय अनि ३५ चार शरीर ( गोदारिफ चैकियक तेजस फार्माण ) ३६ तारिफ भागोपांग ४० पेलिपफ आगापा ४१ निर्माण ४२ समचतुरस्त्र संस्थान ४३ व नाराव संहनन ४४ ४१ इस ४ग ४७ वर्ण ४८ देवगतिप्रायोग्नानुपूर्व ४६ मनुष्य गति प्रायाग्यानुपूर्व ५० गुरु लघु ५१ उपघात ५२ परघान ५३ ॥ बस ५४ प्रशस्त वायोगति ५५ प्रत्येक शरार ५६ ५७ सुभग ५८ नुप्पर ५१ शुभ ६० अशुभ ६१ चादर ६२ पर्याप्त ६३ स्थिर अस्थिर ६५ आदेव ६६ या काति ६० यशःकानि ६८ ऊन गोत्र ६ पाव अन्तराय 38
०४ चहत्तर व प्रकृतिका बंध समित्य गुणस्थान में तीसरे गुणस्थानमें ) होता है ।
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हिंद्रा निद्रा ? प्राचलता २ स्त्यानगृद्धि ३ चार अनंतानुयय खो वेद ८ तिर्यगायु ६ मनुष्यालु १० देयु ११ तिगति १२ ( निग्रोध परिमंदर साति वायन फुक) चार सपान १६ (नृपभ नाराच नाराच अर्द्धनाराच कीलक ) चार संहनन २० तिर्यग्गनि प्रायोग्यानुपूर्य २१ दयोत २२ अप्रशस्त निहायागनि २३ दुर्भग २४ र २५ बाय २६ नोव गोत्र २७
इस प्रकार २७ सत्ताईस फर्म प्रकृतियोंका कर्म बंध तीसरे मिश्र गुणस्थान में नहीं होता है । इसलिये २७ प्रकृति यह तीसरे गुणस्थान में अवधक है ।