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________________ जीव और कर्म विचार | -X ५ स्वाति वामन कुजक संस्थान ) ५९ (वज्रवृषभ' नाराव नृपम नाराच नागेचे अर्ध नाराच कोलक) पांच संहनन ६४ प ६५ रस ६६ गंध ६७ वर्ण ६८ ( विर्यगति मनुष्य गतिं देवगति मनुपूर्व ) तो पु १ बघु ७२ उपघात ७३ परघात ७४. उद्योत : अभ्वाल : द्विधाविहायोगति 84 प्रत्येक शरीर २२८ ] स ८० सुभग ८६ दुभंग ८२ सुखर ८३ दुखर ८४ शुभ ८५ अशुभ ८६ वादर ८७ पर्यात ८८ स्थिर ८६ अस्थिरं ६० बष ६१ अनादेव ६२ यत्रः कीर्ति ६३ यशः कीर्ति ६२ द्विगोत्र ६६ पंच अन्तरय २०११ इसप्रकार एक्सो एक प्रकृतियोंका वन्य दूसरे गुणस्थान ( सासादन गुणस्य न ) में होना है । मिथ्यात्व १ नपुंसन् वेद २ नरक्यु ३ नरक गति सानुपूर्व्य 8 नरकगति ५ चार जाति (एकेन्द्रिय जाति दो इन्द्रिय जाति तीन इन्द्रिय जाति चार इन्द्रिय जाति) हुंडक संस्थान १० असं प्रतापादिका संहनन ११ आतप १२ स्थावर १३ साधारण १४. सूक्ष्म १५ वार्यात १६ इन सोलह प्रकृतियोंका बंध दूपरे सासादन गुणस्थानमें नहीं होता हैं इसलिये ये प्रकृति अबंधक है। क्योंकि ये प्रकृतियां पहले गुणस्थान में ही वन्त्र सक्ती हैं । पांच ज्ञानावरण ५ : चक्षु अवक्षु अवधि केवल निद्रा प्रचला) छर्द दर्शनावरण २१ द्विद्या वेदनी १३ ( मप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलन ) वारह कपाय २५ (हास्य दिपट हास्य अरति रति शोक
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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