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________________ " " जोच और फर्म-विचार। [२२० यशकीर्ति ११० अयशः कोनि १११ तीर्थकर ११२-दो गोत्र १११ पांच अंतराय ११६ निर्माण १२० इसप्रकार एस सी वोम प्रकृति वंधके योग्य होती है। नाना लोवॉकी अनेक्षा एक समयमें एक्सी वीस १२० प्रजातियोंकाबंध हो सका है। __ सबंधपनि सम्यक्प्रकृति १ सम्यगमिथ्यात्व २ पांच गरीर पंच शरीर संघात १२ सान स्पर्श १६ चार रस २३ गंध २४ चार वर्ण २८ ये अष्टाविंशति प्रकृति अबंध सा है। गुणस्थानोंकी अपेक्षा कृतियोंका विवरण निध्यात्व गुणस्थानमें आहार शरीर आहारक अंगोपांग और नीकर प्रति इस प्रकार तीन प्रकृतिका बंध पहले गुणस्थान नहीं होता है इसलिर १२० प्रतिशमसे तीन प्रति कम कर देनेले एकमो मन्ह ११७ प्रतियोका बन्ध मिथ्यात्व स्थानमें हो सकता है। मिथ्याशी जीशेको एक्मौ सत्रह प्रकृतिका दध होता है इसलिये मिथ्यात्वका त्याग करना बहुत हो श्रेयस्कर है। पांव ज्ञानावण ५ नव दर्शनावरपा १४ द्विधा वेदनी १६ सोलह क्याय ३२ हास्यादि षट ३८ स्त्री वेद ३६ पुवेद ४. तिर्यवायु ४१ मनुष्यायु ४२ देवायु ४३ तिर्यंच गति ४४ मनुष्यगनि ४५ देवगति ४६ पंचेन्द्रिय जाति ४७ औदारिक शरीर ४८ क्रियक शरार ४६ तेजस ५० कार्माण ५१ बौदारिक आंगोपांग ५२ वैकियिक सांगोपांग ५३ निर्माणे ५४ { समचतुत्र निरोध परिमंडल
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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