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________________ ओव और कर्म विचार । 1 [२१ जिन जिन जीपने भात्माको जाना है । उनने सबसे प्रथम कर्म और कर्मफलको प्रथम जान लिया है। वही विद्वान् है जिसने कर्म और धर्मफलको जान लिया है। यही सम्यग्दृष्टी है, वही मेद-विज्ञानी है, वही आत्मवित् है, वही तत्व है, वही पंडित है, वही परमात्मा है, वही शाता है और वहीं विवेकी है। जिसने कर्म और कर्मफलको जान लिया उसने सर्व ज्ञान • लिया और जिसने कर्म और कर्मफल नहीं जाना उसने कुछ भी नहीं जाना है । जिसने फर्म और कर्मफलको देखा है उसने सब कुछ देख लिया, जिसने कर्म और कर्मफलका अनुभव किया है उसने समस्त जगतका अनुभव किया है। जिसने कर्म और कर्मफल पर विश्वास कर आत्मस्वरूपका अवलोकन किया है उसने जगतका भवलोकन कर लिया है । जिसने कर्म और कर्मफलके रुपको समझ लिया है उसने जगतके समस्त पदार्थों को समझ लिया है । जिसने कर्म और कर्मफल मान लिया है उसने परमात्माको मान लिया है। जिसने कर्म और कर्मफलको तरफ दृष्टिपात और विचार किया है उसने पंच-परावर्तन स्वरूपका यथार्थ विचार कर लिया हैं। जिसने कर्म और कर्मफलको प्रमाणताको प्रगट कर दिया है उसने संसारके समस्ततत्वोंकी प्रमाणना प्रगट कर दी है । शुद्ध और यशुद्धीवंका यथार्थ बोध कर्म और कर्मफल जानने में है । मोक्षमार्गका प्रकाश कर्म और कर्मफलके परिज्ञानमें
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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