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________________ जीव और कर्म विचार। २२५ पुण्य प्रतियों में सबसे उत्शष्ट तायंकर प्रकृति है नीपंकर प्रकृतिके उदयफे प्रधम ही (गर्भायतार अवस्थाके छह महीना प्रथम हो) रत्तवृष्टि होती है। नगरीकी रचना होती है देव देविया इन्द्र इन्द्राणी गर्भ महोत्सव और जन्म महोत्सव करती है तीन लोकर जीयाको जन्म समय सुख प्राप्त होता तपकल्याण ज्ञानकल्याण और निर्वाण फ्ल्याणमें समस्त जगतफे जीव उत्सव मनाते है। जैसा पुण्यका प्रभाव तीर्थकर प्रतिके उदयसे होता है वसा अन्य पुण्य प्रतिसे नहीं होता है। समोसरणफा वेभत्र भी इसी प्रकृतिक उदयसे जगनको साक्षात पतला देता है कि इन्द्र चंद्र नागेन्द्र महमिन्द्र चकरा नारायण ति नारायण आदि किसीमा पुरुषको यह अतुल संपत्ति प्राप्त नहीं है इसलिये तीर्थकर प्रकृतिफे तमान पुण्य प्रकृति अन्य नहीं है, परन्तु तीर्थंकर प्रकृतिका पध सम्यग्दर्शनका विशुद्धिसे होता है। इसलिये सम्यग्दर्शनकी विशुद्धि जिस प्रकार जेस जितने प्रयत्न द्वारा हो सके वह कार्य फरना चाहिये। सम्यग्दर्शनके समान तीन लोक तीन फालमें फल्योण करने याला अन्य कोई भी नहीं है यधु है तो सम्यग्दर्शन है निधि तोसम्यदर्शन, संपति है नो सम्यग्दर्शन सुखका खजाना है तो सम्यग्दर्शन संसारसेपार होनेफा साधन है तो एक सम्यग्दर्शन दुास्त्रोंका नाश करनेवाला है तो एक सम्पादर्शन और कर्मबंधन तोडनेका उपाय है तो एक मात्र सम्यादर्शन । । । - इसलिये समस्त प्रयत्नों के द्वारा सम्यादर्शनकी प्राप्ति करो
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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