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जोव और बमे-विचार |
मारना चाहता है। अरे भाई ! इस प्रकार अपनी आत्माको पतित मत बना कर्म बंधका विचार कर, पुण्य और पापके स्वरूपको रिवार, गौर अपनी आत्माको संभाल जिस प्रकार भाबोंकी
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विशुद्धि स्थिर हो, जिस प्रकार परिणामों में निर्मलता प्राप्त हो जिस प्रकार सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हो अथवा सम्यग्दर्शनकी दृढ़ना हो वह कार्य कर जिससे तेरा अवश्य ही भला होगा ।
- पुण्य पाप प्रकृतियोंके विषय में, अंतिम दो शब्द
पुण्य पाप प्रकृतियोंके विषय में प्रकाश डोला जाचुका है। तो मी मुख्य दो बातों को ध्यान में रखना चाहिये | सबसे निकृष्ट अनंतानंत दुखको प्रदान करनेवाली मननानंत संसार में परिभ्रमण करानेवाली तीन लोक और तीन कालमें मिथ्यात्व के समान अन्य कोई पाप प्रकृति नहीं है । पाप प्रकृतियोंकी जन्मदादा मिथ्यात्व प्रकृति है । एक मिथ्यात्व प्रकृतिका उदय है तो समस्त पापप्रकृतियोंका उदय नियमसे है ही, मित्व प्रकृतिके कारण ही कर्म बंघ (संसारका ) होता है कर्मबंधके कारण - मिथ्यात्व अत्रिरते प्रमाद कषाय और योग ये पांच कारण है परंतु पाँचों में मुख्य एक मिथ्यात्व ही है अन्य चार अविरतादि कारण संसारके कर्म बंधके कारण नहीं है अविरतादि चार कारण मिथ्यात्वके साथ होवे तो तीव्रतम कर्मबंध होता हैं । घोर कर्मबंध होता है शीघ्र नहीं छूटनेवाला 'कर्मबंध होता है इसलिये भव्य जीवोंको
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प्रथम मिध्यात्वका त्याग करना चाहिये ।.
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