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________________ • जीव और कर्मविचार। [२२३ कर कार्यकर । खुय गहरा विचारकर' मनको स्थिर रखकर विचार कर बुद्धि परसे रागद्वेषका परदा उठाकर विचार कर और सत्य भावोंसे अपने हितको पहिचान अपनी मलाई घुराई अपना सुख दुग्न अपना मार्ग कुमार्ग देख । जो उत्तम हो जिसमें निराकुलता हों जिसमें संत्यता हो, जिसमें दुख नहीं हो, जिसने आत्मा पसिन' न बनना हो, जो संमारके मार्गको नहीं बढ़ाना हो, जो कर्मका नाश भारला हो, जो आत्माको निमल यनाता है । जो अननमानदर्शन सुनवीर्य प्रकट करता ह, उस धर्मको धारण कर ! सच्चे भावोंसे वारण कर, माशचार छोडकर धारणकर, अनीति और दुर्भाधाको छोड़कर धारण कर मश्य सन्मार्ग मिलेगा। विषय कपायोंकी: विजय अवश्य ही की जायगा । फर्म बंधन अश्य हो तोडे जायंगे बंधन मुक अवस्था अवश्य प्राप्त होगी। स्वतंत्रताको अवश्य प्राप्त करेगा जन्म मरणके पंदसे अवश्य ही मुक होगा; पापोले छूटेगा कौर पुण्यका प्राप्त होगा। दुःलोंमे मुक्त होगा और सुखों को प्राप्त होगा अचल अविनाशी अनुपम निरोवाध राज्यको प्राप्त होगा। विपद नारायणपद-प्रतिनारायणपद मढलेश्वर पद साव भौमपद सम्राटपद आदि,महान पदको प्राप्त होगा। - । - जगाले मौतिक स्वराज्यके लिये (जिसका मिलना-हाथमें नहीं, मगियोंक-साथ भोजनपान रोटी बेटी करना चाहता है, विधवा विवाह करना चाहता है हिंसा करना चाहता है कण्ट, शोर पापाचारस दुनियाको, ठाना चाहता है, अनौति और अधममें ससारको ढकेलना चाहता है। माना वाहना हैं मोर दूसरों को १५
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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