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________________ जीव और कर्म-विवार। आत्माका स्वभाव और आत्माका स्वरूप पर वस्तुसे सर्वथा, भिन्न है शुद्ध वुद्ध ज्ञायकस्वभाव टंकोत्कीर्ण निर्मल अचलं विमल परम बीतराग निरंजन परम पवित्र और सर्व उपाधि रहित सुख मय शातिमय ज्ञानमय दर्शनमय अनंतवीर्यमय चिदानदमय अक्षय अनंत स्वभाव मय आत्मा है। वह न तो पुण्यमय है और न पाप मय है। पुण्य पापसे सर्वथा भिन्न है। संहारके समस्त पदार्थ मात्माके एक भी उपयोगी नहीं हैं। कोई भी पदार्थोले आत्माका संबंध नहीं है जिससे कि आत्माको इन संसारी पाप पुण्य पदा. थोसे लाभ या हानि होसके इसोप्रकार आत्मा अजर अमर अक्षय है निराकार है अमूर्तीक है अनादि निधन है। अव्यय है अनत है इसलिये औत्मा न तो स्त्री है न पुरुष है न नपुंसक है न गोरूप हैं, न नरक रूप हैं न देवरूप हैं न नियंवरूप है न क्रोधी हैं न मानी है न लोभी है न मायावी हैं। इन समस्त प्रकारके जालसे रहित परम विशुद्ध स्वस्वभावमें परणत ज्ञानदर्शनमय है । यह शुद्धा. त्माका स्वरूप है। परन्तु संसारी आत्मा कर्मोसे बद्ध है। । इसलिये पुण्यकर्मके उदयमें हर्षित होना, या पापकर्मके उद. यमें दुखी होना, संतापित होना यह विवेकी पुरुषका कार्य नहीं है पुण्य पाप दोनोंप्रकारकी परणात पर अपने भावोंको न रखकर पुण्य पाप फलोंकी इच्छाका परित्याग कर अपने आत्म स्वरूपकी. भावना करना चाहिये। इस लिये किसी भी पदार्थ में राग नहीं करना चाहिये किसी भी पदार्थको आत्मस्वरूप नहीं समझना चाहिये। किसी भी पदा
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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