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________________ ११२] जीव और कर्म-विचार । फरता है। शक्तिसे अधिक कार्य करता है। कैदमें जाता है। राज्य विद्रोह मचाता है लोगोंको प्यारी २ मोहक बात सुनाता है और धर्मके लिये एक पाई नहीं देता है । वरांडी भिस्की आदिकी मिजमानी दिल खोलकर मान वडाईके लिये करता है । उच्च कुलो. त्पन्न पढ़ा लिखा युवक मान वडाईके लिये मालका भोज देता है हजारों रुपया लुटाता है परन्तु धर्म कर्ममें एक पाई देना नहीं चाहता है। यह सब मिथ्यात्वके भावों को व कुशिक्षाकी लि. हारी है। ___इसलिये आवाोंने बतलाया है कि भाई धर्म, प्रतिष्ठा लोभ और माशासे अधिक कीमती है उसको वरावर पहिचान बरा. वर परीक्षा कर निश्चय कर, अनुभव कर, निर्धारित कर, फिर मी बहुनसे पढे लिखे ( अपनेको ज्ञानोका नगाड़ा अपने मुंहके द्वारा ही पीटने वाले) कुशिक्षित स्त्रीके लोभमें धर्मको छोड देते. है। जानि पतिका लोप करते है छुनातका झगडा मिटाना चाहते हैं। जगले टुक्डेके लिये चट पट धर्मको छोड़ देते हैं। जरासी वाह वाहीके लिये धर्ममें कलंक (विधवाविवाह आदि द्वारा ) लगाते हैं। यह सब कुशिक्षाका फल है। ___ आचार्योंने गृहीत मिथ्यात्वका मार्ग कशास्त्रांका अध्ययन' बतलाया है । वर्तमान समयकी पश्चिम पद्धतिको शिक्षामें कुशास्त्रोंका हो खुलम खुला पठन पाठन होनेसे कोमल बच्चों व वाल. कोके हदयमें ग्रहीत मिथ्यात्वके अंकुर स्वयमेव उत्पन्न हो जाते है इसका फल यह होता हैं कि कुशिक्षाकी वासनासे धार्मिक
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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