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________________ जाव और धर्म-विचार। [२२१ मोको मलिन बनाना है जिससे नरकादि दुर्गनि होती है। "बंध -कृपेवर क्षिप्त" सधा कुआमें धनको जानबूझफर पटक देना और सुखी मानना अच्छा है परंतु कुशिक्षा । धर्मविरुद्ध शिक्षा शिक्षितोंके छोडिंग स्कूल और मिथ्या अन्योंको पढ़ाई के लिये दान देना अच्छा नहीं है ) और लपात्रमें दान देना अच्छा नहीं है। लोग पुण्यके फल सुस्न धन संपत्तिको चाहते हैं परंतु पुण्य परना नहीं जानते या पूण संपादन परना आता नहीं है । भगवानकी पूजा और पात्रदानको भूलकर व्यसनोंकी वृद्धि दान देते है । स्वाध्यायके बदले उपन्यास व अखबार पढ़ते हैं। पूजाके बदले व्यभितारके प्रचारकी बातें करते हैं। इसी प्रकार फल दुम्ब दरिद्रता रोग शोफ पीडा आदिको चाहने नहीं है। परंतु परते है पाप! परस्त्री सेवन, हिंसा-ठ चोरी और पापाचरणोंको सेवन करते हैं । परंतु पापकार्योंसे सुख नहीं प्राप्त होता है। दुख दूर नहीं होता है। दरिद्रता नष्ट नहीं होती है। किसी कविने कहा है कि पुण्यस्य फल मिच्छंति पुण्यं नेच्छंति मानवाः । पापस्य फल नेच्छति पापं कुर्वन्ति मानवाः ।। अर्थ-मनुष्य पुण्यके फल सुखको तो चाहते है। परंतु पुण्यकार्योको नहीं करते हैं । पापके फलको तो नहीं चाहते हैं परंतु 'पाप कार्योको करते ही हैं। __ मान बडाईके लिये विषयवासना और कपायकी पुष्टि में एवं संसारफी वृद्धि में मनमाना धन खर्च करता है फज करके दान
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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