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जोच और कर्म-विचार।
ऊच गोत्र फर्मबंधके कारण-पवित्र सदाचारका उपदेश देना जनतामें पवित्र सदावारकी वृद्धि करना अपने कुलफा गौरव रख. कर कुलमे मलिन काय (विधवा विवाह विजातीय विवाह ) कर कलंकित नहीं करना । व्रतोंकी रक्षा करना। शीलवतोंको महिमाका प्रचार करना। जैनयिधिले विगह कराना, संस्कारोंकी वृद्धि करना, गुरुओंकी रक्षा करना, धर्मायतनों की रक्षा करना, गुरुओंकी आज्ञा शिरोधार्यकर किरी भी भाईले विसंवाद नहीं करना, साधर्मी भाइयोंके साथ निष्कपट व्यवहार करना सदावा. रकी समस्त क्रियाओंका पालन करना सो ऊचगोत्रका कारण है।
रसोईकी शुद्ध क्रियाको लिये जितना उत्तम और उत्कृष्ट विचार किया जावेगा उतने ही परिणाम ऊंचगोरके अधिक होंगे।
शूद्रके हाथका पानी नहीं पोना, मलिन और रजस्वलाके हाथ का पानी पीना, विनाछाना पानी नहीं पीना, निद्य लोकके हाथका पानी नहीं पीना, मुर्दा जलाकर आये हुए-अशौच (शुद्धि नहीं की) मनुष्य के हाथका पानी नहीं पीना, मलिन आहार (वजारकी पूडी आदि ) नहीं भक्षण करना-पिडशुद्धि पालन करना, वस्त्र शुद्धि मनशुद्धि रखना और पंवपरमेष्ठीकी विनय करना सो सब अच गोत्र हैं।
नीच गोत्रके कर्मबंधके कारण-मलिनाचार धारण करना अभिमानसे अन्य दीनहीन प्राणियोंको तुच्छ समझ कर उनको हानि पहुंचाना । उनको मारण ताडन करना अपने कुलमें दुष्ट काम करके पलक लगाना सदाचारमें बट्टा लगाना, भोले भाइयोंको