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जीव और कर्म-पिवार। [२०५ धारण करना, जिनागममें संदेह नहीं करना, धर्मके स्वरूपमें वितं. डावाद कर धर्मकी पवित्रताका नाश नहीं करना, प्राणोंसे अधिक प्यारे धर्मकी रक्षाके लिये सदैव तैयार रहना, तन मन धन धर्मकी रक्षा और उन्नतिमें लगाना सो देव आयु फर्मबंधके कारण हैं।
शुभ नामके बंधके कारण-मन वचनकायकी प्रकृति सरल व भोली रखना, ज्ञानके दुरुपयोगसे मन वचन कायफी प्रवृति वंचल धर्मविरुद्ध नहीं करना, बुद्धि व ज्ञानको विवेक पूर्वक रखना दूसरोंके दिव्य रूपको देखकर हसना नहीं, आंगोपाग छेदन नहीं करना, नासिकादि नहीं काटना, मुनिके शरीरको देखकर ग्लानि नहीं करना, रोगी मनुष्यको संवा करना, दुखी जीवोंकी रक्षा करना, पोडशभावना भाना, दशधर्मको पालन करना, देव गुरू और थागमकी श्रद्धा करना, साधर्मी भाइयोंकी रक्षा करना, सो सव शुभ नामकर्मवधके कारण हैं। ____ अशुभ नामर्मवधके कारण-मन वचन कायको वक्र रखना दूसरोंको देखकर हंसना, रोगी मनुष्यको मार देना, दुखी मनुष्यके मारनेमें धर्म क्तलाना, पागल कुत्तोंको मारनेमें धर्म बतलाना, असमर्थ प्राणियोंको मारनेमें इपित होना, जातिशंकरके कार्य करना, विजातीय विवाहका उपदेश देना, विधवाविवाहके प्रचारसे शील भ्रष्ट करना, यममें जीववधका उपदेश देना, धर्मात्मा भाइयों को पीडा देना, धर्मात्मा भाइयोंके साथ विसंवाद कर मनमाना पापकर्म करना व भोली समाजसे पापकर्म कराना सो सब अशुभनामपर्मवधके कारण है।