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जीव और कर्म-विचार ।
का लोप कर अपना घर धनाना, तीथे पर मासादना करना, देव द्रन्यको भक्षण करना, बहुत ससारके बढ़ानेका पापमार्ग बतलाना हिंसादि पापोंका आरंभ करना अधिक मुजनित परिणाम रखना सो नरक आयुके बंधके कारण हैं।
मुनियोंको उपसर्ग करना, शीलसे भ्रष्ट घराना, आगमको जलाना आगम शास्त्रों पर सोना, आगम शास्त्रको पावोंसे कुचलना, आगमके अर्थमें मनमाना भाव मिला देना सो भो नरकायुके वधके कारण हैं।
त्यिंच आयुकर्मके बंधके कारण-मायाचारसे रहना मायासे धर्मभेष धारण कर पापाचरण सेवन करना, कुटिल परिणाम रखना, सो सब तियंच मायुकर्मबंधके कारण है।
मनुष्य आयुकर्मबंधके कारण-संतोषसे नीति पूर्वक चलना, धर्मका पवित्रताका उद्देश्य रखकर अपना व्यापार-व्यवहार चालवलन पवित्र रखना, देवपूजा गुरुसेवा स्वाध्याय सयम और दान करना भगवानकी आज्ञाको मानकर आगमविरुद्ध नहीं चलना, शीलव्रत पालना जीवोंकी दया करना, सत्य बोलना लो सब मनुच्य मायुके कर्मबंधके कारण हैं।
देव आयुकर्मवधके कारण-जिनधर्मका उद्योत करना जैन. “धर्मकी प्रभावना आगमके अनुकूल करना, तपश्चरण करना सम्य. ग्दर्शनकी विशुद्धि रखना, भगवान की पूजा करना गुरुसेवा-( वया• पृत्य ) करना, जिनमदिर और जिनायतनोंकी रक्षा करना ज्ञानी विद्वानों (जो धर्मके पंडित हैं) की सेवा करना, वात्सल्यभाव