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________________ जीव और कर्म-विचार। [२०३ - योंको व्यभिचारजात कहना । संघका अवर्णवाद करना । व्यभि. चारियोंको ब्रह्मचारी कहना। श्रावको मलिन च फलंकितकरनेके लिये यागमको थानाको न मानना । सो सर दर्शन मोह. नीय कर्मके कारण है। चारित्रमोहनीय कर्मके कारण-कपायके वश होकर धर्मके पवित्र स्वस्पको मलिन बनाना । धर्मकी पवित्रताका नाश करना, धावकको पवित्र क्रियाका लोप करना, मुनिक्रियाओंका लोप करना, वरणानुयोगके स्वरूपमें परिवर्तन करने के लिये जिनागम विरुद्ध धर्मका स्वरूप बनलाना, परिणामोंकी लग्न विषयकपाय और पापवासनामं लगाना, विषयकपायके सेवन करनेम धर्म मानना ।सो चारित्राइनायकर्मबंधके कारण है। ___ नीति, सदाचार, धार्मिक संस्कारका लोप करना, विवाहको सामाजिकबंधन बनलाकर आगमके विरुद्ध पाप-प्रवृति करना सो सब चारित्र मोहनीय कर्मके कारण है। विधवाओंझा विवाह कराना, आचारसे भ्रष्ट करना, सो भी चारित्रमोहनीवर्मक वधका कारण हैं। विना छाना पानी पीना, मांस भक्षण करना, प्रहके हाथका भोजन करना सो मी चारित्र मोहनीय कर्मक घंधका कारण है। क्रोध करना, मान करना, लोभ करना यार मायाचारसे धर्मके मेषको धारण कर लोगोंको उगना-पाय मावोंसे लोगों को पापमागेमें लगाना सोभी चारित्रमोहनीयकमेके बंधके कारण हैं। नरक आयुकर्म के बंधके कारण तीर्थका पैसा खाना, तीर्थ
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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