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________________ जोध भी कर्म विचार । [ २०७ पतिन करना धर्म भ्रष्ट करना, शीलको मर्यादा लोवना, खान पानमें विवेक नहीं रखना, नीच मनुष्य के साथ भोजन करना, समक्ष सेवन करना, मद्य मास मधु सेवन करना, अनार्य लोगोंका उच्ष्टि पाना, मर्यादा विरुद्ध पदार्थ सेवन करना, साधर्मी माइयोंसे तकरार कर उनको पवित्र आचरण से गिराना, संस्कार लोप करानेके लेख लिखना, कुलात्ययका नाश करना, बिना छाना पानी पीना, अपनी प्रशंसा करना और दूसरोंकी निंदा करना सस्कृत नहीं पढे लिखे होने पर भी अपनेको मानी संस्कृतका पंडित प्रगट करना, और संस्कृत पढे लिखे ज्ञानियों की रिल्लो उडाना, अपने निय पापमय मलिनाचारोंको छिपाना, और दूसरोंके उत्तम आचा• शैको मलिन बनानेका प्रयत्न करना, धर्मको पवित्र आशा अपने झानकी दुर्मदनाले अवनित्र पनाना, हीनाचार और पतित अवस्था दूसरे भोले भाईकी फरके हमना दूसगेका घर जलाफर तापना, ट्रेनरोंकी सपत्ति पुत्र मित्रोंको देखकर झडना, आमर्ष करना, हेप करना, मत्सरभाव रखना इत्यादि सर्व नीचगोत्र के कारण है । फुशिक्षासे प्राय पढ़े लिखे ( अपनेको ज्ञानी व पंडितकी मार कर अपना मतलव घनानेवाले ) ही मनुष्य नीन्रगोत्र कर्मके कारणको अधिकतर उत्पन्न करते हैं। भविष्य में तो नीवकुटमें जन्म लेवेंगे ही। परन्तु इस वर्तमान मीच बनने में दो अपना सौभाग्य समझते हैं। अस्पर्श मनुष्यों के साथ खान पान करते हैं । पर्याय में भी तो वे और प्रत्यक्ष नीव अन्तरायकर्म धके कारण - दानादिक पवित्र कायोंमें विघ्न १४
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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