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________________ - - जोव और फर्म-विचार। [२०१ । कुशिक्षासे ज्ञानवरण और दर्शनावरण कर्मके बन्धके कारण अनायाल ही मनुष्य स्वयमेव करने लगता है, कुशिक्षाले अज्ञान होता है । विवेक और विचार-बुद्धि नष्ट हो जाती हैं। जिससे वह जिनवाणीको वृद्धि को रोक कर ज्ञानावरण कर्मका चन्ध करता है । पण्डितोझी निन्दा कर और मुनियोंकी निन्दा फर प्रशस्त ज्ञानकी वृद्धिको रोकता हैं। इसलिये मानावरण कर्मका बन्ध फरता हैं। रात्रिमे अभक्ष भक्षण होटलमें करता है। जिन दर्श. नको रोकता हैं पाठशालाओंकी बुद्धिको अपने स्वार्थके सामने कंटक समझता है । इसलिये उनके चन्दामें विघ्न करता है यह सब ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्मके बन्धके कारण हैं। बु.शि. क्षासे ही शास्त्रों की मूखता पूर्ण समालोचना की जाती हैं यह भी प्रशस्त ज्ञानको दुषण लगाकर प्रशस्त ज्ञानको रोकता है यह सब ज्ञानावरण व दर्शनावरणके कारण हैं। वेदनीकर्मके बन्यके कारण जीवोंको मारना, जीवोंकी दुख देना, यज्ञमें पशबघ करना, देवी देवता पर बलि चढाना, दसरोंक संपत्तिको अन्याय पूर्वक छीन लेने के लिये ( साम्यवाद ) वोलसेविजम जैसी दुर्नीतिको नीति मानकर श्रीमानोंकी हत्या करना, रोटोन्नतिके बहाने दूसरोंका धन संपत्ति लुटना, स्वतंत्रताकी प्राप्ति के बहानेसे जगतके भोले प्राणियोंको ठगना। पुण्य पापका लोपः करना, कर्मको नहीं मानना, परलोक नहीं मानना पढे लिखे होकर घूस लेकर दूसरे जीवोंको दुख देना, जिनपुजन करना, वात्लत्यभाव रखना, साथर्मा भाइयोंको धर्मबंधु समझकर सेवा करना
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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