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__२००१ जीव और फर्म-विचार । मौजमजाके लिये धर्मशास्त्रोंका (आगम विरुद्ध विधवाविवाह
आदि) रूपान्तर गढ़ना । मिथ्या मतको रढानेवाले मोर पापोंकी वृद्धि करनेवाले कपोलकल्पित लेख लिखना उन लेखोंको धर्मरहस्य के नामसे प्रगट करना । सर्वज्ञको वाणीमें संदेह कराना । जिना. गमके स्वरूपको अन्य मिथ्यामतके स्वरूपके साथ मिलानेका प्रयत्न करना इत्यादि सर्व कार्य करनेसे ज्ञानावरण कर्मका वध होता है। जैसे आजकल इस कार्यको पढे लिखे सुधारक अपने मनलबकी सिद्धि के लिये कर रहे है।
दर्शनावरण कर्मके वधके कारण (सक्षिप्त ) दूसरोंकी आंख फोडना, जिनेन्द्र भगवान की मूर्तिके दर्शन करनेमें विघ्न करना शराब पीना, दिवसमें शयन करना,दूसरों की संपत्ति देखकर रोना । आत परिणाम करना । मुनियोंकी निन्दा करना । मन्दिर वधाने को रोकना, पंचकल्याणके करानेमें व्यर्थ खर्च करवाना, रात्रिमें होटलमें खाना, अभक्ष सेवन करना, जातिपांतिका लोप फरना, शास्त्रोंकी प्रमाणता नष्ट करना इन्द्रियोंको छेदन करना मन्न पान रोकना । इत्यादि सर्ग दर्शनावरणके बंधके कारण है। दर्शनावरणके बंधके कारण अनेक है । ऊपर संक्षिप्तमें बतलाये हैं। और भी मन्दिरकी आवक बन्द करना, मूर्तिपूजाका लोप करना, पापका उपदेश देना, मन्दिरफा द्रव्य अपहरण करना ! पाप कार्यों को उत्तम पतलाना इत्यादि अनेक कारण दर्शनावरणके बन्धके कारण हैं । वर्तमान समयमें लोग अज्ञान भावसे या स्वार्थबुद्धिसे दर्शनावरण कर्मके वन्धके कारण यहुत करते हैं।