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जीव और कर्म-विवार।
और सब प्रकारकी योग्यता प्राप्त होने पर भी तथा उत्तम पात्रका समागम होने पर भी जो मै दान प्रदान करने में विन करे, दान देनेके भाव न होने दे। तथा भावोंमें लोम रसको उत्पन्न कर दान देने में विपरीत बुद्धि होजावे। दान देते हुये भी मनमें मलिन वासना और मुर्छा परिणाम बना रहे वह दानातराय नामर्ग है मलिन वासनासे दिये हुए दानका फल भी उत्तम नहीं होता है
लोमांतराय-अनेक प्रकारका उत्तमोत्तम और प्रत्यक्ष लाभजनक व्यापार करने पर भी लाभकी प्राप्ति न हो। अपने व्यापारसे अपनेको लाभ न होकर उसी व्यापारसे दूसरोंको लाभ हो जाय प्राप्त कीहुई संपत्तिका स्वभावरूपसे विनाश होजावे। आती हुई संपत्तिमें राजा या कोई महान पुरुप बाधक बन जावे। इत्यादि अनेक प्रकारले सुख साधनोंका लाम होने में जो कर्म विधन करे वह लाभांतराय नामकर्म है।
मोगांतराय-भोग सामग्री उपस्थित होने पर भी जो भोगन सके, भोजन खान पान सामनी परोसी जाने पर भी उसका भोग न ले सके। वह भोगान्तराय है।
उपमोगान्तराय-उपभोग सामग्री उपस्थित होने पर भी जा उपभोग पदार्थोको सेवन न कर सके। वह उपमोगातराय है। ___धीर्यान्तराय-जिस कर्मके उदयसे संपूर्ण प्रकारके कार्य फरनेकी शक्ति उपस्थित होनेपर भी कार्य करने में असमर्थता हो, समस्त बातोंके सहन करनेकी शक्ति मौजूद होने पर भी सहन करने में अन्तरंग भावोंकी कायरता हो । परिणामोंमें धैर्य न हो,