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________________ १८ जीव और कमे-विचार । साम्पमात्र लोकोत्तर है । तोन जगतके जीवोंको अभयदान एक समय मात्र में यह आत्मा प्रदान कर सक्ता है । जगतके समस्त जीवोंको शांति और परम-हर्ष के साथ परमानंद स्वरूप बना सता है। आत्मामें दानशक्ति अद्वितीय है । त्रिलोक का साम्राज्य प्रदान यह आत्मा अन्य आत्माको करा सका है। आत्माका ज्ञान सर्वगत है । आत्माका दर्शन सर्वव्याप्त है। आत्माका सुख सर्वश्रेष्ट और सर्वोत्कृट अक्षय अनंत है। आत्माको कोई भी स्पर्श नहीं कर लक्ता ? आत्माको कोई पकड़ नहीं सका | आत्मा को कोई नष्ट नहीं कर सक्ता १ सात्माको कोई दवा नहीं सका ! आत्मा अजेय है आत्मा अवद्ध है। आत्मा अखंड है। आत्मामें परम पुस्पार्थ पार्थ है । आत्मामें स्वतंत्रता है । मात्मामें सर्व मान्यता है । आत्मामें त्रिजगत पुज्यता है । आत्मामें अनंन और अक्षय ऐश्वर्य है। वह अपने रूपमे स्थित होने पर प्राप्त होता है । आत्मामें परम विभूति है । आत्मा निर्भय है । आत्मा ही बाह्य है । भात्मा ही सेवन करने योग्य है । आत्माही आदरणीय है । आत्माही भजनीय है । आत्मा ही उपादेय है । सर्व तत्त्वोंमें निर्विकार आत्मा है, सर्वतत्त्वों में परमपुनीत आत्मा है, सर्वतत्रों में आत्मा ही श्रेष्ट है । सर्व तत्त्वों में उत्कृष्टता आत्माकी है । सर्वतत्त्वोंमे सुख नहीं है; सुखमात्र एक आत्मामें ही हैं। ज्ञान आत्मामें है । वल दीर्घ आत्मा में है। जो जो उत्तमता और ग्राह्यता संसार के समस्त पदार्थोंमें हैं उससे भी उत्तरोत्तर उत्तमता और ग्राह्यता भरमा में है परंतु आत्माको यह सर्व संपत्ति कर्मी पराधीनता से
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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