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________________ ___ बार और स्म-विचार। [१७ नहीं करता है और पूर्व सचित पामोको तप द्वारा जला देता है उस समय जन्म-मरणले संकुर रहित शुद्धजीव हो जाता है। यद्यपि जोर-द्रव्य इन्द्रियगोवर नहीं है। नो भी कर्म सदित दोनेसे शरीराशनिमें दृष्टिगोचर होता है और स्वानुभव में प्रत्यक्ष है। यी जीव-द्रव्य अजर अमर-मक्षय और अविनाशीक है, सदा अग्वट है, बभिन्न है, बक्षिन्न है, शाश्वत है, नित्य है। अग्नि इस जीवद्रव्यको भम्म नहीं कर सकी है। शल छेदन नहीं कर सके है, उल्कापात इसको पीडित नहीं पर सका है। वायु इसको उडा नहीं सकी है, जल प्रयाह इसको प्रवाहित नहीं कर सक्ता है, पृथ्वी अपने पेटमें घर नहीं सकी है, भ्रमंडल की ऐसी कोई जबर्दस्त शक्ति नहीं है जो इस भात्मा पर अपना अधिकार जमा सके । आत्माकी शक्ति सर्वोपरि है, आत्माका प्रभाव सर्वो. हए और सोंच है। मात्माका सल अपूर्व मोर त्रिलोकको मोम करने वाला है । यात्माका वीर्य तीन लोक और तीन काल के समस्त पदार्थों पर प्रभुत्व रखने वाला है। भात्माका साहस अदम्य है । आत्माका धेर्य अतुल्य है । मात्माको गति अवर्णनीय है। एक समयमें बौदह राजप्रयंत गमन हो सका है। यात्माका - पराक्रम अनंत है; बद्र बादिको मी मेदन कर यपना कार्य करता है। आत्माका तेज अपरंपार है;कोटि स्र्य भी ऐसा तेज प्रकट नहीं कर सके है । वह भी अक्षय और मनंत है। आत्माकी शाति सपूर्व है ऐसी शांति अन्य पदार्थमें सर्वथा नहीं है। आत्माका
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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