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जीव और कर्म विचार ।
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में समय हो जरासे कायक्लेशमें शरीर कृश होजावे वह
अस्थिर नाम है ।
आदेयनामर्क्स - जिस कर्मके उदयसे जीवोंके शरीर में कानि उत्पन्न हो वह आदेय नामकर्म है ।
अनायता
उत्पन्न न हो वह सनादेय कर्म है ।
- जिस क्मेके उदयसे जीवोंके शरीर में काति
यश. कीर्ति नामवर्क्स -जिल कर्मके उदयसे जीवोंके प्रशस्त कार्य व गुणोंके निमित्तले फीति होना सो यश. कांतिः नामकर्म है अथवा अप्रशस्त कार्य करने पर भी और दुर्गुण समापन्न होनेपर यश कीर्ति नामकर्मके उदयसे कीर्ति होना सो यश, कीनि नामधर्म है। भावार्थ - यशःकीति कर्मके उदयसे मलिन कार्य करने पर भी प्रसंशा होती है। अनीनिके कार्य करने पर भी प्रसंशा और यश होता है यह सन यशःकीर्ति कर्मका उदय है । मथवा अपने में गुण हों या न हों हो, तो भी लोकमें प्रस्थापन हो वह यशःकीर्ति नाम कर्मके उदयका फल है ।
अयशःकीर्तिनामकर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवोंको प्रशस्त गुण विद्यमान होनेपर भी प्रशंसा न हो। अच्छे कार्य करने पर भी प्रशंसा न हो । नीति और सदाचार पूर्वक प्रकृति करने पर भी प्रशंसा न हो वह अयश कीर्ति नाम है । अथवा अपने में दोषों. का सद्भाव नहीं होने पर भी दोपोंकी प्रगटता होना सो अयश:- कीर्ति नामवर्ग है।
तीर्थंकर नामर्श - जिस कर्मके उदयसे जीवोंको नीन जग•