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________________ जाव और धर्म-विचार। [१८३ शरीर प्राप्त होता है कि जिलमें खट्टारल होता है यह पुदलका परिणमन है। ५- मधुररस नामकर्म-जित स्मैके उदयसे जीवोंके शरीर में इक्षुग्मरे समान मधुग्रस प्राप्त हो वह मधुररस नामर्म है। पुद्गल परमाणुमें मधुररस शक्तिका परिणमन होना सो मधुररस नामकर्म है। रस नामकका अभाव नहीं कह सके हैं क्याकि निवादिक शरीर में क्टुक रसादिका अनुभव प्रत्यक्ष सिद्ध है। ___ मंधनामकर्म-जिल नामनमो उदयले जीवोंक शरीरमें गंध प्राप्त हो वह गंध नाम है। वह दो प्रकार है। सुगंध नामर्म, टुगंध नामकर्म । जिन कर्मके उदयसे जीवोंके शरीरमें सुगंधी प्राप्त हो जैसे तीर्थकर पग्मदेवके शरीरमें सुगंधी प्राप्त होती है। पुद्गल पामाणुमें ऐती शक्तिका प्राप्त होना सो सुगंधी नामकर्म हैं। ___ जिस कर्मके उदयसे जीवोंके शरीर में दुर्गंध प्राप्त हो जैसे नर. कके जीवोंके शरीरमें दुर्गधी होती है। गंधर्मका यभाव कह नहीं सके क्योंकि सुगंधी और दुगंधी प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होनी है। पुद्गल परमाणुर्मे इस नामकमैके उदयसे शरीरमें सुगंधी और दुर्गंधीका परिणमन हो वह गंध नामकर्म है। जैसे हाथीके शरीरमें गं या गुलारके फूलमें सुगंध प्रत्यक्ष सवको है। वर्णनामकर्म-जिस कमे उन्य जीवोंके शरीग्में वणे प्राप्त हो वह वर्ण नामकमे है । इसके पाच भेट है। वर्ण प्रत्यक्षमें लरको
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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