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जीव और कर्म-विचार। परिज्ञान इन्द्रियों द्वारा जीदोंको प्राप्त होता है। इस प्रकार कारण कार्य रूप स्पर्श, म्पर्शनामके उदयसे जीवोंको प्राप्त होना है।
स्पर्शनाम कर्मका अभाव ह नहीं सके है क्यों क स्पर्शका समाव सर्वत्र है । आठ प्रकारका स्पर्श सर्वत्र दृश्यमान हैं।
रस नामकर्म-जिम कर्मके उदयसे जीवोंके शरीरमें पांव प्रकारके रसमें कोई प्रकारका रस प्राप्त हो वह रस नामर्म है।
१-निक्करम नामर्म । जिम कर्मके उदयस जीवोंको अद्रख बादिके समान निक्तरमाला शरीर प्राप्त हो वह तिक्तरस नामकर्म है कमिण पुद्गल परमाणुका निकराल रूप शरीर में पारणमन होता है। हरी मिरच आदि बनस्पतिके जीवोंके शरारमें तिक्तस है।।
२- कटुकरस नामक मे-जिस कर्मके उदयसे जीवोंको नीय आदिके समान कटुगमवाला शरीर प्राप्त हो वह स्टुररस नामर्म है, कार्मण पुद्गल परमाणुओंका शरीरमें कटुकरस मय परिणमन होना सा कटुकास है। हरित कुटकी आदि बनस्पतिके जीवोंके शरीर में यह रस होता है।
३-कपायरस नामकर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवोंको हरीके समान या बहेडा समान क्पायलो सवाला शरीर प्राप्त हो वह पायरस नामक है। पुद्गल फार्मण वर्गणाओंझा शरीरमे कपा. यरस रूप परिणमन होना सो फषायरल नामकर्म है।
४-आम्लरस नामकर्म-जिस कर्मके उत्यसे जीवोंको नीवुके रसके समान (खट्टा ) या इमलीके रसके समान रसवाला शरीर प्राप्त हो वह आम्लरस नामकर्म है। इस क्मेसे जीवोंको ऐसा