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________________ जीव और कर्म-विचार । [ १८१ कर्मभूमिको सियों, आदिके तीन संहनन नहीं होते हैं इसलिये स्त्रियोंका कर्मके करनेयोग्य ध्यान नहीं होता है इसीलिये स्त्री पर्याय में मोक्ष सर्वथा नहीं होती है । स्पर्शनामकर्म-जिस फर्मके उदयसे शरीर में स्पर्श हो वद स्पर्शनाम धर्म है वह आठ प्रकार है । १ - जिस कर्मके उदय से गले कपोल शिर-छाती आदि प्रदेश में वर्कशना हो उसको कर्कश स्पर्श कहते हैं । २- मृदुल स्पर्श - जिम कर्मके उदयसे मयूरपिच्छ आदिके समान फोमल स्पर्श दो वह मृदुस्पर्श नामकर्म है । ३- गुरुम्पर्श - जिस फर्मके उदयसे जीवोंको लोह आदि धातु के समान गुरुम्प दो वह गुरुस्पर्श नामकर्म है । ४ - लघु-पर्श - जिस कर्मक उदयसे जीवोंका अतुल के समान लघुस्पर्श के समान बहुत हलका स्पर्श हो, वह लघु स्पर्श है । ५- स्निग्धपशं-- जिस वर्ग के उदयसे जोधोंको तिलके समान स्निग्धता लिये स्पर्श हो वह स्निग्धस्पर्श है । --- ६- स्पर्श - जिस फर्मके उदयसे जीवों को पालुकाके समान रूक्षस्पर्श हो वह रुक्ष स्वर्ण है। ७ -- शीत स्पर्श - जिस कर्मके उदयसे जीवको जल के समान शीतस्पर्श हो वह शीतस्पर्श है । ८ - उष्णस्पर्श--जिस कर्मके उदयसे जीवोंको अग्निके समान उष्णस्पर्श हो वह उष्णस्पर्शनाम है । ये आठ प्रकार के स्पश शरीरमें प्राप्त होते है । और इनका
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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