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________________ जीव और फर्म- विचार 1 १८० ] हो और आधा भाग शिरा मेदा या मांससे चिपका हो । ५ --- कीलिका संहनन -- जिस कर्मके उदयसे जीवोंको हाडों की प्रत्येक संधिमें कीलिका सहित शरीर प्राप्त हो । ६ - असंप्राप्ताखुपाटिका संहनन-जिस कर्मके उदयसे जीवोंके शरीर में अस्थिबंध अस्थिसंधिबंध और शिरावंध स्नायु मांस और त्वचा संघटित हो । हाडोंकी संधियां दाडोंकी वधियोंसे वेष्टित न हो। फीलिसहित न हो किन्तु स्नायुमात्रसे लपटे हो या मास तथा त्वचासे सबंधित हो वह असंप्राप्तासृपाटिकासंहनन हैं । यह पाप कर्मके उदयसे जीवोंको प्राप्त होता है । या छह संहननोंसे हो सकता है । परन्तु कर्मोंको दग्ध व्यान करनेवाला और घोर उपसर्ग सहन कर ध्यानमें स्थिर रहनेवाला' पहला सहनन है । दूसरा तीसरे संहननवाला भी अंतर्मुहूर्त पर्यंन ध्यान एक साथ कर सक्ता है । परन्तु कर्मों को निर्मूल करने लायक ध्यान नहीं होता है । - चौथा - पाचवा संहनन धर्मध्यानको धारण करता है यथासाध्य उपसर्गों को सहन कर सकता है । परन्तु घोर उपसर्ग या परीषह जीतनेमें असमर्थ होता है । छट्टा संहनन - धर्मध्यानके योग्य होता है परंतु उपसर्ग या परीषह सहन करनेमें सर्वथा असमर्थ होता है इस संहनन से परीपह और उपसर्ग सर्वथा जीते नहीं जाते हैं पंचमकालमें यह संहनन होता है । इस संहननको धारण कर मुनि हो सक्त हैं तप-वरण कर सक्त हैं अट्ठावीस मूलगुण पालन कर सके हैं।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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