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जीव और फर्म-विचार। [१७६ ना नामम-जिस फर्मके उदयसे जीवोंको ऐसा शरीर प्राम हो जिनमे कि हाड संधि-मजा मेदा नसाशिराफी रचना हो । यदि सानन नामर्म नहीं माना जाय तो डाड-शिरा नसा वीर्य मारिसे रखता नही तो नसतो यह संहनन नामकर्म छह प्रकार है।
१-६वृषभनागचसदनन---जिस कर्मके शुभोदयसे जीरोंको वनजरिय -अशा वेटन (दाडॉो पांधने वाला) और कीलि. फा हो र पपमनाराचसंहनन नामफर्म हे। इससे शरीरकी रचना सुदन होता है। घोर उपसर्ग आने पर भो शरीरके विषय किसी प्रकार मय नहीं होता है । घोर परीपद सहन फरनेमें यह शरीर समर्थ होता है। शरीरमें इसले रतनी जबरदस्त शक्ति होती है कि ध्यानसा मुरय साधन यह शरीर होता है साधारण मस्र शरसोंसे भी न्यायात रूप नहीं होता है।
२-रखताराचसंहनन नामकर्म-जिस शुभ कर्मके उदयसे जोवोंको बनभय अस्थि (हाड) और घनमर कीलिका घाला शरीर प्रात को यह भी च्यानके लिये उपयोगी है।
३-नारायलंदनन-जिस कर्मके उदयसे जीवोंको कीलिका वाला और चेष्टनाला शरीर प्राप्त हो वह नाराच संहनन काह. लाता है। इस सहननके शरीरमें टाडोकी प्रत्येक संधिस्थानमें वेष्टन होता है जिससे अस्थि और अमियके मुडनेके प्रदेश मजबूत वेटनसे वेगिन रहते हैं।
४-अर्द्धनाराव संहनन-जिस फर्मके उदयसे जीयोंको ऐसा शरीर प्राप्त हो कि जिसमें हाडोंकी संधिस्थानों में आधा तो घेटन