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________________ १७८] जीव और कर्म-विचार । २-निग्रोधपरिमंडल संस्थान नामर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवोंको निग्रोध वृक्षके समान नाभिके ऊपर भागमें बहुसंख्यक परमाणुकी रचना हो, ऊपरका भाग अधिक विस्तारवाला हो और नाभिके नीचेशा भाग सल्प परमाणुको रचना रूप हव हो अथवा गोल माकारका हो वह निग्रोधपरिगंडलसंस्थान नामकर्म हैं। ३-स्वातिसंस्थान नामकर्म-निस कर्मके उदय जीवोंको । वामीके साकार या शाल्मली वृक्षर समान नाभिके नोचेके भाग अतिशय विशाल हों और ऊपरका भाग हत्व हो ऐले आकार वाले शरीरकी प्राप्ति हो वह स्वातिसंस्थान नामकर्म है।। ४-वामनले स्थान नामर्म-जिस वर्मके उदयसे जीवोंको ऐले शरीरकी प्राप्ति हो कि जिसमें समस्त शरीरके मांगोपाग वा अवयव एकदम ह्रस्व हों। जिस कालमें जितना शरीरका प्रमाण जिनागममें बतलाया है उसले हस्व देखने में मात्रयरूप शरीरकी प्राप्ति हो वह वामनसस्थान नामफर्म है। ५-कुजव संस्थान नामर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवोंके शरीरमें (पीठमें ) पुगलोंका स्कधरूप एक कुबहा साकार हो जिलको व्यवहारमें अवडा रहते हैं वह कुजलसंस्थान नामपर्म है। ६-हंडल्संस्थान नामकर्म-जिस कमेके उदयसे जीवोंके विन विचित्र वीभत्स आकारवाला हुन्डके समान (नारकादि पर्यायमें प्राप्त ) सर्व आंगोपांग हुडके साकार वाला शरीर प्राप्त हो वह हुन्डल संस्थान नामकर्म है ।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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