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________________ जोय मोर फमें विचार। [१०५ नहीं पढ़ते हैं। परन्तु शिक्रिया का समान प्रतिभास दाता है। लाहार कर-जिम मर्मक उत्यस छ गुणस्थानी मुनिगजरे संगको दूर करने के लिये परमशुम परम सक्षम मन्यायानी शरीर सदा रह आहारक शरीर नामकर्म मालाना है। तेजरोर नामर्ग-जिम फर्मके उदयसे मुनियोंको तया मनाधारण जीरोंका शुभा-रामात्मक -शुमाशुम फरने चाला पाम सश्म-अध्याधाना जो शगर उत्पन्न होता है वह तैजम नगेर नाम है। गागंणार नामफर्ग-जिस कर्गके उदयसे जीवोंको कपिडमय समस्त मसयर्गणाका प्रवय (जो इस जीवने पद्ध किर हैं जो आट धर्ममय हो रहे है) को फार्मण शरीर नामकर्म फदने है। मागोवाग नामकर्म-जिल कम उदयले जीवोंके हाथ पैर शिर आदि या उपांगको रचना हा वह आगोपाग नामकर्म है। यह तान प्रकार होता है | बोदारिफ आगोपांग, वैक्रियिक आगोपाग, माहारक मागोपाग! जिस फर्मके उदयसे औदारिक शरीर में मस्तक पीठ वाह आदि आंगोपागकी रचना हो वह औदारिक आगोपाग नामर्म है। इसी प्रकार वैझियिक और आहारिक शरीरमें अगोपांगकी रचना होना सो क्रमसे वैक्रियिक और आहारिक शरीरागोपाग नामकर्म है। संग पाठ और उपांगके अनेक भेद है। नासिका ललाट आदि उपाग है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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