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जीव और फर्म- विचार |
पंचेन्द्रिय जीवों की पर्याय में जन्म लेना पड़े वह पंचेन्द्रिये जाति नामकर्म है जैसे मनुष्यका जाव | गौका जीव ।
शरीर नामकर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवोंको शरीर धारण करना पडे - स्पर्श गंध वर्ण रस रूप पुदुगलकी पर्यायको धारण करना पड़े वह शरीर नामकर्म है । यद्यपि शुद्धनयसे जीवशुद्धबुद्ध ज्ञायकत्वभाव निरंजन निर्विकार निर्दे ह अशरीरी अमूर्तिक है तो भी शरीर नामकर्मके उदयसे जावको मूर्तिमान बनना पडता है। जो शरीर नामकर्म न माना नाय तो जीवके शुद्ध और अशुद्ध में दो भेद नहीं रहे । सर्व जीव मुक्त अवस्थामे रहे |
औदारिक नाम शरीर - जिस कर्मके उदयसे जीवको सप्त धातु और सप्त उपधातुमय अथवा मन्य प्रकार भी मनुष्य तियंचका शरीर प्राप्त हो वह मौदारिक शरीर नामकर्म है । जैसे गौका शरीर मनुष्य का शरीर और वृक्ष वनस्पतिका शरीर |
वैकियक शरीर नामकर्म - जिस कमके उदयसे जीवको देव नारीकी पर्याय अनेक विक्रियावाला शरीर प्राप्त हो वह वैकियिक शरीर नामकर्म हूँ । देव अपने शरीरका रूप लघु महान् आदि अनेक प्रकारका कर सके हैं। इसके असख्य भेद हैं। तो भी पृथक् चिक्रिया अपृथक विक्रिया ऐसे दो भेद हैं
ऋद्धि और विक्रियामे भेद है । ऋद्धि मनुष्य पर्याय में मुनीश्वरोंको होती है। वैक्रियिक शरीर देव नारकी जीवोंके होता है। औदारिक शरीर में भी चिक्रिया होती है । परन्तु तपको शक्तिसे । समुहात और विक्रियामें भेद है । समुदातको वैक्तिविक शरीर
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