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जीष और कर्म विचार ।
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अनेक प्रकारके ( चित्रोंके समान ) रूप रूपान्तरको बनावे | अनेक प्रकारकी पर्यायकों धारण करावे । विविध प्रकारकी अवस्थामें प्राप्त हो वह नामकर्म है ।
चित्रकार जिसप्रकार वाघ-सिंह- गौ- मनुष्य देव - नारक आदि मादि अनेक प्रकारके चित्र बनाता है । उसीप्रकार नामकर्म गौ बाघ. मनुष्य- हाथी- चीटी सर्प कुबड़ा आदि अनेक प्रकारका आकार बनाता है ।
सब कर्मोंसे नामकर्मकी विचित्रता बहुत आश्चर्यजनक है । संसारकी रचना नामकमकी रचनाको देखकर दंग होना पड़ता है । संसार है क्या ? नामकर्मकी नाट्यशाला है, नामके उद यसे जीवोंको अनेक प्रकारके स्वाग (रूप) धारण करने पड़ते हैं।
जिस प्रकार नाट्यशाला में राजा आदिका विविधमेष मनुष्य धारण करता है इसीप्रकार संसाररूपी नाट्यशाला में यह प्राणी नामकर्मके उदयसे विविधप्रकार विचित्र खांग धारण करता है। इन स्वांगों को देखकर ही कितने अज्ञ मनुष्योंने ईश्वरको सृष्टिकर्ता माना । कितने ही मूर्ख लोगोंने नामकर्मकी विचित्रता देखकर ईश्वरका ही समस्त रूप माना। कितने ही मूर्ख लोगोंने जीवकी सत्ताका अभाव माना इसप्रकार नामकर्मकी विचित्रताका कुछ भी पार न पाकर संसारके भोले जीव अपनी अज्ञानतामें संसारमें मोहके वश हो जाते हैं ।
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नामकर्मकी विचित्रतापर सचमुच संसारके प्रत्येक विद्वानको आश्चर्य आये बिना रहता नहीं है । एक मनुष्यके दो मुख
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