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________________ १७२1 जीव और कर्म-विचार। नामकमके उदयसे उत्पन्न हुए। इस दो मुलधाले मनुष्य को देखकर विधाताकी करतून मानकर कितने हो आश्चर्य करते हैं कितने रो दूसरे प्रकार विचार करते हैं। __नरकगति-जिस कर्मके उदयसे जीवोंको दुःखपूर्ण मरक गतिमें जन्म लेना पडे उसको नरकगनि कहते हैं । नरफ आयुकर्म और नरफाति नामकर्ममें यही भेद है कि नरकायु फर्मके घंध होने पर जीपोंको नरकगतिम चवश्य जाना ही पडे परंतु नरकगति फर्मफे बंध होनेपर नरकनिमें जाना ही पडे ऐसायम नहीं है। क्योंकि गतिफर्म-घंध प्रत्येक समयमें होता है और निर्जरा रूपमो होता है। जो गनिकर्म धायुकर्म के साथ घंध हो तो यह गतिकर्म नियमित रूपसे फल देता है : अन्य घेघे तो वह रिना 'फर्स दिये ही खिर जाता है। " तिर्यग्गति नामकर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवों को तियेच गतिमें जन्म लेना पडे वह तिर्यग्गा नामकर्म है। इससे पशुपर्याय-घोडा ऊंट हाथी गौ आदिक्षी पर्याय प्राप्त होती है।" मनुष्यगतिनामकर्म-जिस कर्म के उदयसे जीवोंको मनुष्य'पर्यायमें जन्म लेना पडे वह मनुष्यगति नामकर्म हैं। । देवगति नामकर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवोंकी देवपर्याय में जन्म लेना पडे वह देवगति नामफर्म है। " ___ जो गति नामकर्म न हो तो जी अगति स्वरूप (परिभ्रमण सहित ) हो जावे। गति 'नामकर्मके प्रभावसे ही जीव समस्त 'पर्यायों में गति करता है। -
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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