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जीव और कर्म विचार ।
नरक आयुकमे - जिस कर्मले उदयसे जीवोंको नरक पर्याय में काली मर्यादासे स्थिर करे वह नरकायु कर्म है ।
तिर्यग्गति आयुकर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवों को तिर्यग्गति ( तिर्यग्गति पर्याय ) में स्थिर करे वह तिर्यग्गति आयुकर्म है ।
मनुष्य आयुर्म - जिस कर्मके उदयसे ओवोंकों मनुष्य पर्याय कालकी मर्यादासे स्थिर करे वह मनुष्य आयुकर्म है ।
देवायुकर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवोंको देव पर्याय में कालकी मर्यादासे नियमित रूपले स्थिर रखे वह देवायु नामकर्म है।
यद्यपि मोहनीकर्म सबसे बलवान है तो भी आयुकर्मकी चलवती गति कुछ कम प्रवल नहीं है । केवलज्ञान उत्पन्न होनेपर भी आयुर्म से सकल परमात्माको भी जब तक आयुर्म बाकी है। तब तक ठहरना ही पड़ता है । केवलसमुद्घात आयुकर्मसे ही होता है ।
जीवोंको नरक आदि पर्यायमे व्यायुकर्म जब तक पूर्ण न हो जावे तब तक समस्त प्रकारके भयंकर दुःख सहन करता हुआ भी जबरन उस पर्याय में नियमसे रहना पडता है । एक क्षणमात्र भी अपना वल आयुकर्म नहीं छोड़ता है । इसलिये आयुकर्म की प्रधानता है ।
आयुका जब तक बंध है तब तक संसार है ।
कर्मके वंधके अत्यन्ताभावको ही मोक्ष कहते हैं ।
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आयु
नामकर्म
जो कर्म अपने उदयसे जीवोंको चित्रकारके समान अनेक