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जोव और कर्म- विचार ।
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पुरुषवेद -- जिस कर्मके उदयसे जीवोंको स्त्रियोंके साथ रमण परनेकी माकांक्षा हो वह पुरुषवेद है ।
नपुरसकवेद - जिस धर्मको उदय से जीवोंके परिणामोंमें ईंटकी अनि समान पुरुष और स्त्री दोनों के साथ रमण करनेकी माकांक्षा हो वह नपुंसक वेद है ।
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इस प्रकार मोहनीकर्मके २८ मेद है । समस्त कर्मो मोहनीकर्म ही बलवान है । समस्त कर्मोंका राजा है । समस्त कर्मो का बल मोहनी कर्मके उदयमें हा है । मोहनीफर्म के अभाव में कोई भी कर्म विशेष बाधा नहीं पहुंचाता है और कितनेही कर्म मोहनाकर्मके नाश होनेपर नाशका प्राप्त हो जाते हैं। इसलिये मोहनीकर्म हो समस्त कर्मोंमें बलवान है । दूसरे मोहनी कर्मका कुछ अंश - दर्शन मोहनीकर्मका उपशम या क्षयोपशम ही जब आप स्वरूपको प्रकट करदेता है, अनादि काल्के अज्ञानको भगा देता है और नत संसारका अंत ला देता है तो फिर इसकी (मोहनी कर्मकी) पूर्ण शक्तिका क्या अनुमान लगाया जाय ।
आयुकर्म
जिसप्रकार टहला बद्ध केदीके समान एक अवस्थामै कालको मर्यादा रहना पडे । अथवा कठहरामें पात्रको प्रवेशकर देने पर वह मनुष्य अन्यत्र जाने में सर्वथा असमर्थ होता है इसी. प्रकार जिस कर्मके उदयसे जीवको एक पर्याय ( एक अवस्था ) में कालकी मर्यादासे नियमितरूप स्थिति करना पडे. उसको आयु फर्म कहते हैं ।