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जीव और कम विचार |
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धर्मोपाधि दूर होने पर अशुद्ध जीवही शुद्ध होकर पूर्ण ज्ञानी निराकुल- परमशान्त- परमआनंद मय और पूर्ण स्वतंत्र कृतकृत्य हो जाते है |
कर्मोपाधिले नवीन नवीन कर्मबंधका अंकुर उत्पन्न होता हो रहता है। फर्मोपाधि दूर होजाने पर नवीन कर्मों के अकुरकी उत्पत्ति न हो जाता है। जिस प्रकार चावल के धान्य परले कर्मोरावि रूप छिलका दूर कर देने पर चावलमे अकुरोत्पत्ति नष्ट हो जाती है । छिलका सहित धान्य निरन्तर अंकुरित होताही है । शरारके छूट जानेसे कर्मो राधि नहीं छूटती है, यह स्थूल शरीर अननपार छोडा । परन्तु कर्मो को सत्ता आत्मा पर पूर्ण होनेसे संसार के जन्म-मरणवश अंत नहीं होता है । पर्मोकी प्रवत्तासे एक शरीर छूटने पर दूसरा शरीर धारण करना पडता है । दूसरा छूटने पर तीसरा, तीसरा छूटने पर चौथा शरीर धारण करना पडता है, इस प्रकार जवतक कर्मों का आत्मा के साथ संबंध है तचतक निरंतर एक शरीरको छोडना और दूसरे नवीन शरीरको धारण करना यह व्यापार अशुद्ध जीवके साथ निश्तर लगा दी है। इसी संतति कहते हैं, जन्म मरणका चक पहते हैं, ससार कहते हैं ।
शुद्धजीव में फर्मो का संबंध सर्वया नष्ट हो गया है इसलिये जन्म मरणका चक्र सर्वधा नष्ट हो गया है। शुद्ध जीव जन्म-मरण को उपाधि से सर्वथा रहित है ।
एक शरीर छूटने पर दूसरे शरीरको धारण करनेके लिये