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जीव और कर्म विचार।
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हास्यका एदय उमा निमित्त कारण हो जाये तो साधारण हास्य (अकयाय) फपायसे भी बड़े बडे विप्लव हो जाते हैं। .
जिसप्रकार यामी रोगको जड है उसीप्रकार हासी भी पायके उदयफी जड़ । इसलिये हंसी स्वतः तो इतनी हानि नहीं करती है परन्तु उसके उदयके लाथ कपायों (फोध-मान आदि) का उदय हो जाये तो अवश्य चारित्रमें हानि होनेकी संभावना रहती है। __पदार्थ के स्वरूपपा रसना यह एकप्रकारको अज्ञानता है, अज्ञा. नपूर्वक रागभायम हंसना यह अन्य कपाय मावोंको उदय करता है परन्तु पदार्थ वरूपको यथार्थ जानते हुए गगादिक भावोंको प्राप्त नहीं होकर हमनेले चारित्रया घात नहीं होना है। सभी कमी विचार पुरुषोंवो ससारकी दशा और जीवोंका। अज्ञान देवासी पानी है और यह हंसी संसारसे विरक्त भावोंको उत्पन्न करती हैं। इसलिये हास्यको ईपत् कपाय कहा है।
रतिकर्म-जिस कर्मके उदयसे जीवोंजो द्रव्य, क्षेत्र, काल भावके निमित्तसे पुद्गल स्कंधोंमें रतिभा हो वह रनिकर्म है।।
पुत्र-मित्र-धन धान्य भोगोपभोग और इतर पदार्थों में रागभाव प्रेमभावका होना तो द्रव्य रतिकर्म है। . . . ।
उत्तम उत्तमाक्षेत्र गृह वसतिका जिनालय और तीर्थ मादिमें रतिभाव होना सो क्षेत्ररतिकर्म है। । :
। -- सुखमय-शीतोष्णयाधा रहित प्रकृतिके अनुकूले कालमें रतिभाव होना सो कालरतिकर्म है।