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बीर और कम- विचार ।
विशेषता के परिणाम हों, जिससे आत्मा के परिणाम ति संय मका घात करे या गृहस्थचारित्र और भुनिवारित्रमें भी विक रुपता उत्पन्न करें उसको अकपायचारित्रमोहनी कर्म कहते हैं । कषायचारित्रमोहनी कर्मके भेद-क्रोध, मान, माया, लोभ जिसप्रकार चारित्रको धान करते हैं उसप्रकार अक्षाय चारित्र मोहनी धर्म चारित्रकी विशेष शक्ति नाश नहीं करता है तो भी आत्मा के परिणामों में ऐसी विशेषता अवश्य ही उत्पन्न कर देता है जिससे प्रमाद और पर- पदार्थ में रतिभाव कुछ न कुछ रूपमें अवश्य ही हो जाता है ।
ईषत् फ्पाय- नो रूपयको अकषाय कहते हैं। यदि अकषायचारित्र मोहनी कर्मका उदय अप्रत्याख्यानकषायके उदयके साथ हो तो भिन्नरूप कार्य होगा । परं पदार्थ में विशेष रागभाव होंगे और यदि प्रत्याख्यान स्पायके साथ साथ पायवारित्रमोह नीका उदय है तो पुस्तक शिष्यादिकमे रागभाव होगा इसी प्रकार यथाख्यातवारित्रके कुछ अंशोंमे धान यह अकपायचारित्र सोहनी धर्म कर सक्ता है ।
होस्पर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवोंके परिणामोंमें रागका । कारण हास्य उत्पन्न हो उसको हास्य कर्म कहते हैं ।
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हास्यकर्म से जोवोंको हँसी भाती हैं । हास्यसे रागभाव होते है, रागभावसे प्रमाद होता है। पर पदाथमें रुचि और द्वे पभाव भी होते हैं। लड़ाईकी जड़ हंसी होती हैं । हास्यकर्म ईपत् कपाय है परन्तु हास्य के साथ साथ अन्य कपाका उदय हो जावे और
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