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जीव और कर्म-विचार । -संज्वलनमान-जिसके उदयसे जीवोंके परिणामों में लताके समान मानवाषायको प्राप्त हो वह संस्खलन मान-कषाय है।
लताको नन्न करने में जरा भी देरी नहीं होती है लताको सरल करने में रचमानभी प्रयत्न नहीं करना पड़ता है। तथा स्वल्पकाल का मी, व्यवधान नहीं होता है। इसी प्रकार संज्वलन मानक्षायकेउदयसे जीवोंके परिणामोंमें ऐसी कठोरता नहीं होती है जिसके वशीभूत होकर वह सर्व जीवोंकी दया पालन करना ही छोड देवे। या जीव-अधकारक मिथ्याभाषण कारे अथवा कुशील, सेवनके भाव करे । संज्वलन मानकषायके उदयसे परिणामोंमें प्रमाद होता है । परन्तु महाव्रतको सांगोपाग पालन करता है। मानकषायके परिणामोंसे किसीका अनिष्ट नहीं विचारला हैन' आत रौद्ररूप परिणामोको करता है। , संज्वलन माया-जिसके उदयसे जीवोंक परिणामों में धूलके समान वकता (कुटिलता) मायाचार हो वह संज्वलन मायाकषाय है।।
धूलीकी वक्रता हवा लगते ही नष्ट हो जाती है। इसीप्रकार जो मायाकषाय उदय आते ही तत्काल नष्ट हो जावे, परिणामोंमें विशेष विकृतिको उत्पन्न नहीं करे, यह संज्वलन मायाकषाय है।
संज्वलन मायाकषायके उदयसे जीवोंके परिणामोंमें इतनी विशुद्धि नहीं होती है जिससे वे यथाख्यातचारित्रको धारणा कर सकें। परंतु मायाकषायके उदयसे प्रमाद अवश्य होता है। महावतको पूर्णरूपसे पालन करता है। उसमें वह दोंग नहीं